________________
सभ्याज्ञानचन्द्रिका वीठिका 1
- बहुरि भिन्न भागहार विर्षे भाजक के हारनि की अंश कीजिए अर अंशनि कौं हार कीजिए । असे पलंटि भाज्य-भाजक का गुण्य-गुणकारवत् विधान करना । जैसे संतीस के आधा कौं तेरह की चौथाई का भाग देना होइ तहां असें लिखिए बहुरि भाजक के हार पर अंश पलट असें २ |१३| लिखिना । बहुरि मुरणनविधि कीए एक सौ अडतालीस हार पर छब्बीस अंश २६ भए । तहां अंश का हार कौं भाग दीए पांच पाए । अर अवशेष अठारह छन्वीसवां भाग, ताका दोय करि अपवर्तन कीए नव तेरहवां भागमात्र भया । असे ही अन्यत्र जानना।
बहुरि भिन्न वर्ग अर धन का विधान मुणकारवत् ही जानना । जाते समान राशि दोय की परस्पर गुणे वर्ग हो है । तीन की परस्पर गुणें धन हो है। जैसे तेरह का चौथा भाग कौं दोय जायगा मांडिया परस्पर गुणें ताका वर्ग एक सौ गुणहतर का सोलहवां भागमात्र १६६ हो है । अर तीन जायगा मालि २१९ परस्पर गुरणे इकईस से सत्याण का चौसठयां भाग मात्र ६६ घन हो है। बहुरि भिन्न वर्ममूल, घनमूल विर्षे हारनि का अर अंशनि का पूर्वोक्त विधान करि जुदा-जुदा मूल ग्रहण करिए । जैसे वर्गित राशि एक सौ गुणहत्तरि का सोलहवां भाग १६ । तहां पूर्वोक्त विधान तैं एक सौ गुणहत्तरि का वर्गमूल तेरह, अर सोलह का च्यारि असे तेरह का चौथा भागमात्र वर्गमूल आया। बहुरि धनराशि इकईस से सत्याण का चौसठवां भाग ६ | तहां पूर्वोत्त विधान करि इकईस से सत्याणवे का धनमूल तेरह, चौसठि का च्यारि ऐसे तेरह का चौथा भागमात्र । पचमूल पाया । औसे ही अन्यत्र जानना । __बहुरि अब शून्यपरिकाष्ट लिखिए है। शून्य नाम हिंदी का है, ताके संकलनादिक कहिए है। तहां बिंदी विर्षे अंक जोडें अंक ही होय । जैसें पचास वि पांच जोडिए । तहां एकस्थानीय बिंदी विर्षे पांच जोडे पांच भए । दशस्थानीय पांच है ही, असे पचावन भए । बहुरि अंक विषै बिंदी घटाए अंक ही रहै । जैसे पचावन में दश
nteedamsturineKIKAR
a
ma