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। गोम्मटसार मौवकाण्ड गाथा ७०४
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तीनतीन प्रकार हैं । देशसंयत विर्षे अप्रत्याख्यान बिना दोय दोय प्रकार हैं । प्रमत्तादि. अनिवृत्तिकरण का दूसरा भागपर्यंत संज्वलन क्रोध है। तीसरा भाग पर्यंत मान है। चौथा भाग पर्यंत माया है। पंचम भाग पर्यंत बादर लोम है । सूक्ष्मसांपराय विर्षे सूक्ष्म लोभ है । ऊपर सर्व कषाय रहित हैं।
. मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्ययज्ञानावरस के क्षयोपशम त मति आदि ज्ञान हो हैं । केवल ज्ञानायरण के समस्त क्षय ते केवलज्ञान हो है। मिथ्यात्व का उदय करि सहवर्ती असें मति, श्रुत, अवधि ज्ञानावरण के क्षयोपशम से कुमति, कुश्रुत, विभंग झान हो हैं; सो सबै मिलि पाठ ज्ञान भए । तहां मिथ्यादृष्टी सासादन विर्षे तो तीन कुज्ञान हैं। मिश्र विर्षे तीन कुज्ञान वा सुज्ञान मिश्ररूप है ! अविरत पर देशसंयत विष मति, श्रुत, अवधि ए आदि के तीन सुज्ञान हैं। प्रमत्तादि क्षीणकषायपर्यंत विर्षे मनःपर्यय सहित आदिक के च्यारि सुज्ञान हैं । सयोगी, अयोगी विर्षे एक केवल
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बहुरि संज्वलन की चौकड़ी पर नव नोकषाय इनके मंद उदय करि व्रत का थारना, समिति का पालना, कथाय का निग्रह, दंड का त्याग, इंद्रियनि का जय असें भावरूप संयम हो है । सो संयम सामान्यपने एक सामायिक स्वरूप है; जातै सर्वसावद्यायोगविरतोऽस्मि' मैं सर्व पापं सहित योग का त्यागी हूं; असे भाव विर्षे सर्व गर्भित भए । विशेषपर्ने असंयम, देशसंयम, सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसापराय, यथाख्यात भेद से सात प्रकार है। तहां असंयत पर्यंत च्यारि गुणस्थाननि विर्षे असंयम ही है । देशसंयत विर्षे देशसंयम है । प्रमत्तादिक अनिवृत्तिकरण पर्यंत सामायिक, छेदोपस्थापना है। प्रमत्त अप्रमत्त विर्षे परिहार विशुद्धि भी है। मुक्मसापराय विर्षे सूक्ष्मसापराय है । उपशांत कषायादिक विर्षे यथाख्यात संयम है ।
• बहुरि चक्षु, अचक्षु, अवधि दर्शनावरण के क्षयोपशम तें अर केवलदर्शनावरण के समस्त क्षय ते चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवल दर्शन हो हैं । तहां मिश्रगुणस्थान पर्यंत तो चक्षु, अचक्षु, दोय दर्शन हैं। असंयतादि क्षीणकषाय पर्यंत वि चक्षु, अचक्षु, अवधि तीन दर्शन हैं । सयोग, अयोग पर सिद्ध विष केवल दर्शन है।
__ कषाय के उदय करि अनुरंजित जैसी मन, वचन, कायरूप योगनि की प्रवृत्ति सो लेश्या है । सो शुभ-अशुभ के भेद ते दोय. प्रकार है। तहां अशुभलेश्या कृष्ण, नील, कपोत भेद से तीन प्रकार है । शुभ लेश्या तेज, पद्म, शुक्लभेद ते तीन प्रकार
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