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[ मोम्मासार जीबकापड गाथा ७०३.
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पर्याप्त वा अपर्याप्त हैं । सासादन विधे अपर्याप्त तो पांचौं पाइए पर पर्याप्त एक पंचेंद्रिय पाइए है । मिश्र विर्षे पर्याप्त पंचेंद्रिय ही है। प्रसंयत विर्षे पर्याप्त वा अपर्याप्त-पंचेंद्री है । देशसंयत विष पर्याप्त पचेंद्री ही है । प्रमत्त विष प्राहारक अपेक्षा दोऊ हैं । अप्रमत्तादि क्षीराकषाय. पर्यंत एक पंचेंद्रिय पर्याप्त ही है । सयोगी विर्षे पर्याप्त है, समुद्घात अपेक्षा दोल हैं । अयोगी विर्षे पर्याप्त ही पंचेंद्रिय हैं। .. ... .
६. पृथ्वीकायादिक विशेष कौं लीए एकद्रिय जाति पर स्थावर नामा नामकर्म का उदय अर असं नामा नामकर्म का उदय ते निप जीध पयाय ते काय काहिए, ते छह प्रकार हैं। तहां मिथ्यादृष्टी विर्षे तो छहौं पर्याप्त वा अपर्याप्त हैं । सासादन विर्ष बादर पृथ्वी, अप, वनस्पती ए स्थावर अर स विर्षे बेंद्री, तेंद्री, चौंद्री, असैनी पंचेंद्री ए तो अपर्याप्त ही है । पर सैनी अस काय पर्याप्त, अपर्याप्त दोऊ हैं । प्रागै संज्ञी पंचेंद्रिय अस काय ही हैं, तहां मिश्र विर्षे पर्याप्त ही हैं । अविरत विर्षे दोऊ हैं। देशसंयस विर्षे पर्याप्त ही हैं । प्रमत्त विर्षे पर्याप्त हैं। आंहारक सहित दोऊ हैं। अप्रमत्तादि क्षीणकीय पर्यंत पर्याप्त ही हैं, सयोगी विष पर्याप्त ही है। समुद्धात सहित दोऊ हैं । अयोगी विर्षे पर्याप्त ही है। : । - पुद्गल विपाकी शरीर पर अंगोपांग नाम नामकर्म के उदय ते मन, वचन, काय करि संयुक्त जो जीव, ताके कम नोकर्म प्रावने कौं कारण जो शक्ति वा ताकरि उत्पन्न भया जो जीव के प्रदेशनि का चंचलपना, सो योग है 1 सो मन-वचन-काय भेद ते तीन प्रकार हैं । तहां वीर्यातराय अर नोइन्द्रियावरण कर्म, तिनके क्षयोपशम' करि अंगोपांग नामकर्म के उदय करि मनःपर्याप्ति संयुक्त जीव के मनोवर्गणारूप जे पुद्गल आए, तिनिका माठ पांखड़ी का कमल के श्राकार हृदय स्थानक विधे जो निर्माण नामा नामकर्म से निपज्या, सो द्रव्य मन है । तहां जो कमल की पांखड़ीनि का अंग्रभागनि विर्षे नोइन्द्रियावरण का क्षयोपशमयुक्त जीव का प्रदेश समूह है, तिनिविर्षे लब्धि उपयोग लक्षण को धरै, भाव मन है। ताका जो परिणमन, सो मनोयोग है । सो सत्य, असत्य, उभय, अंनुभय रूप विषय के भेद से च्यारि प्रकार है। बहुरि भाषापर्याप्ति करि संयुक्त जो जीव, ताक शरीर नामा नामकर्म के उदय करि अर स्वरनामा नामकर्म का उदय का सहकारी कारण करि भाषावर्गणारूप पाए जे. पुद्गल स्कंध तिनिका च्यारि प्रकार भाषारूप होइ परिणमन, सो वचन योग है। सो वचन योग भी सत्यादिक पदार्थनि का कहनहारा है, तासै च्यारि प्रकार है।
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