________________
सम्यग्ज्ञासतिका मावाटीका ।
[ ७४१ टोका - संज्ञी मार्गणा विर्षे संज्ञी जीव मिथ्यादृष्टी आदि क्षीणकषाय पर्यंत है। तहां जीवसमास संजी पर्याप्त अपर्याप्त ए दोय हैं । बहुरि असंज्ञी जीव स्थावर कायादिक असनी पंचेंद्री पर्यंत मिथ्यादृष्टी गुणस्थान विर्षे ही है नियमकरि । तहां जीवसमास सैनी संबंधी दोय बिना बारह जानने ।।
थावरकायप्पहुदी, सजोगिचरिमो ति होधिः प्राहारी।। " कम्मइय अणाहारी, अजोगिसिद्धे वि णायन्वो ॥६६॥
स्थावरकायप्रभृतिः, सयोगिचरम इति भवति आहारी।.
कार्मण अनाहारी, अयोगिसिद्धेऽपि ज्ञातव्यः ॥६९८॥.. टीका - पाहारमार्गणा विर्षे स्थावर काय मिथ्यादृष्टी आदि सयोगी पर्यंत आहारी हैं । तहां जीवसमास चौदह हैं। बहुरि मिथ्यादृष्टी, सासादन, असंयत, सयोगी इनिक कार्माण अवस्था विर्षे पर अयोगी जिन पर सिद्ध भगवान इनि विर्षे अनाहार है। तहां जीवसमास अपर्याप्त सात, अयोगी की अपेक्षा एक पर्याप्त ए
आठ हैं। ... प्रामें गुणस्थाननि विर्षे जीवसमासनि की कहैं हैं--- ...... मिच्छे चोद्दसजीवा, सासण अयदे पमत्तविरदे य। । सम्णिदुर्ग सेसगुणे, सण्णीपुण्णो दु खीणो त्ति ॥६६॥ म. मिथ्यात्वे चतुर्दश जीवाः, सासानायते प्रमत्तविरते च । ...:
संझिद्विकं शेषगुणे, संज़िपूर्णस्तु क्षीरण इति ॥६९९॥ ___टीका - मिथ्यादृष्टी विर्षे जीवसमास' चौदह हैं । सासादन विर्षे, अविरत विर्षे, प्रमत विर्षे चकार ते सयोगी विर्षे संशो पर्याप्त, अपर्याप्त ए दोय जीवसमांस हैं । इहां प्रमत्त विर्षे आहारक मिश्र अपेक्षा अर सयोगी विषैः केवल समुद्घात अपेक्षा अपर्याप्तपनां जानना । बहुरि अवशेष पाठ गुणस्थाननि विर्षे अपि शब्द तें अयोगी विर्षे भी एक संज्ञीपर्याप्त जीवसमास है। .. .......... .
आगें मार्गणास्थाननि विर्षे जीवसमासंनि कौं दिखावै हैं - तिरिय-गवीए चोइस, हवंति सेसेसु जाण दो दो दु। मम्गणठाणस्सेवं, यारिण समासठाणागि ॥७००॥
था
-
in-
S
TAN'
THES