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सम्माननिका भाषाहीका ]
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पर च्यारि अधिक तीन से कहैं है। ताके एक घाटि तीन सै भए । बहुरि पाठदै, नवे, दर्शव, बारहवें गुणस्थानी क्षपक जीवनि का प्रमाण उपशमकवालौं हैं दूरणा हे शिष्य! सूजानि ।
, इहां तीन से च्यारि उपशम श्रेणीवाले जीवनि की संख्या का निरंतर पाठ समयनि विर्षे विभाग कर हैं
सोलसयं, चउवासं, तीसं छत्तीस तह य बादालं । अडदाल चवणं, चउवाएं होति उवसमर्गः ॥६२७॥
षोडशकं चविंशतिः, त्रिंशत् पत्रिशत् तथा च द्वाचत्वारिंशत्।
अष्टचत्वारिंशत् अतःपंचाशत् चतुःपंचाशत् भवति उपशमके ॥६२७॥ टीका -बोधि में अंतराल न पडे अर उपशम श्रेणी कौं जीध माडे तो पाठ समयनि विर्षे, उत्कृष्टपर्ने एते जीव उपशुम श्रेणी मांड, पहिला समय तें लगाइ आठवां समय पर्यंत अनुक्रम ते सोलह, चौईस, तीस, छत्तीस, चियालीस, अडतालीस, चौवन, चौवन जीव निरन्तर अष्ट समयनि विर्षे होंहि (१६, २४, ३०, ३६, ४२, ४८, ५४, ५४) । .... बत्तीसं अडवालं, सट्ठी बावत्लरी य चुलसीदो । . . . छण्णउदी अछुत्तर-सयमठुत्तर-सयं च खवगेसु२ ॥६२८॥ .
द्वात्रिंशदष्टचस्वारिंशत, षष्टिः द्वासप्ततिश्च चतरशीतिः । . षण्णवतिः अष्टोत्तरशतमष्टोत्तरशतं च क्षपकेषु ॥६२८॥ ..टोका - बहुरि निरन्तर प्रष्ट समयनि विर्षे क्षपक श्रेणी को मांडे असे जीव उपशम श्रेणीवालों से दूणे जानने । तहां पहिला समय में लगाइ अनुक्रम से बत्तीस, अडतालीस, साठि, बहत्तरि, चउरासी, छिनदै, एक सौ आठ, एक सौ पाठ (३२, ४८, ६०, ७२, ८४, ६६, १०८, १०८) जोष निरंतर प्रष्ट समयनि विर्षे हो हैं । इस ही संख्या को पाटि बाधि को बरोबरि करि पहिले चौंतीस मांडे, पीछे पाठ समय साई बारह-२ अधिक मांडे, तहां आदि चौंतीस (३४) उत्तर बारह (१२) गच्छ पाठ ८,
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२. पटवण्डायम - पवला : पुस्तक ३, पृष्ठ ११, गाथा . ४२. १.पवण्डागम - भषला : 'पुस्तक ३, पृष्ठ ६२, गाथा-सं० ४३,