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[ गोम्मतार पोवार गापा ६१३.६१५ पुद्गलनि करि रूक्ष गुण युक्त पुद्गल बंधे हैं। बहुरि तिनि पुद्गलनि की दोय संज्ञा है - एक रूपी, एक अरूपी :
तिनि संज्ञानि की कहैं हैं। .:: 'रिणद्धिदरोलीमझे, विसरिसजादिस्स समगुणं एक्क। .
रूवि ति होदि सण्णा, सेसाणं ता अरूवि सि ॥६१३॥
स्निग्धेतरावलीमध्ये, विसरशजातेः समगुण एकः ।"
रूपीति भवति संज्ञा, शेषाणां ते अरूपिरग इति ॥६१३॥ टीका - स्निग्ध-रुक्ष गुरगनि की पंकति, तिनके विष विसदश जाति कहिए । स्निग्ध के अर रूक्ष के परस्पर विसदृश जाति है, ताके जो कोई एक समान गुण होइ ताको रूपी अंसी संज्ञा करि कहिए है । पर समान गुरए बिना अवशेष रहे, तिनिकों प्ररूपी असी संज्ञा करि कहिए है। : : ताहो कौं उदाहरण करि कहैं हैं... . “ दोगुणणिद्धाणुस्स य, वोगुणलुक्खाणुग हवे रुयो।
इगि-तिगुणादि अरूवी, रुक्खस्स वि तं व इदि जाणे ॥६१४॥
विगुणस्निग्धारणोश्च द्विगुरगरूक्षाणको भवेत् रूपी । ... एकत्रिगुणादिः अरूपो, रूक्षस्यापि तद व इति जानीहि ॥६१४॥
टीका - दूसरा है गुण जाकै वा दोय हैं गुण जाके असा जो द्विगुण स्निग्ध परमाणू, ताकै द्वि गुण रूक्ष परमाणू रूपी कहिए, अवशेष एक, तीन, च्यारि इत्यादि गुण धारक परमाणू अरूपी कहिए । असे ही द्वि गुण रूक्षाणु के द्वि गुण स्निग्धाण रूपी कहिए; अवशेष एक, तीन इत्यादिक गुणधारक परमाणू अरूपी कहिए।
णिद्धस्स गिद्धेण बुराहिएण, लुक्खस्स लुक्खेण दुराहिए । रिणद्धस्स लुक्खेण हवेज्ज बंधो, जहण्णवज्जे विसमे समे वा।६१५३
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१. 'गुणसाम्ये सदशाणाम्' तत्त्वार्थभूत्र : अध्याय-४, सूत्र-३५ । .... .. २. 'यधिकादिगुरणानांतु' तत्त्वार्यसूत्र : प्रध्याय-४, सूत्र-३६ २ न जघन्यगुणानाम् ||३४||