________________
-
६६६ 1
[ गोम्मटसार विकास गाषा ६.८.६१० भास-मण-वग्गणाको, कमेण भाषा मणं च कम्माको । ' अट्ठ-विह-कम्मदवं, होदि ति जिणेहि रिणद्दिठं ॥६०८॥ .
___ भाषामनोवर्गरणातः क्रममा भाषा मनश्च कार्मणतः । . . . . . अष्टविधद्रव्यं भवतीति निर्गनिविष्यम् ।।६।८। ..
टोका -- भाषावर्गणा का स्कंधनि करि च्यारि प्रकार: भाषा हो है । मनोवर्गरणा का स्कंधान करिः द्रव्यमन हो है। कारिग वर्गस्या का स्कंपनि करि पाठ प्रकार कर्म हो हैं, असें जिनदेवने कहा है।
गिद्धतं लुक्खतं, बंधस्स य कारणं तु एयादी। संखेज्जासंखेज्जाणंतविहा णि लुक्खगुणा ॥६०६॥
स्निग्धत्वं रूक्षस्वं, बन्धस्य छ कारणं तु एकादयः ।
संख्येयासंख्येयानन्तविधा स्निग्धरक्षगुणाः ॥६०९॥ ।' टोका ---, बाह्य अभ्यंतर कारण के वश तें जो स्निग्ध पर्याय का प्रगटपना करि चिकणास्वरूप. होइ, सो. स्निग्ध है। ताका भावं, सो स्निग्धत्व कहिये । बहुरि रूखारूप होई,सो रूक्ष है; ताका भाव, सो रूक्षत्व कहिए । सो जलं वा छेली को दूध का गाय का दूध, वा भैसि का दूध वा ऊटणी का दूध वा घृत इनि विर्षे स्निग्धगुण की अधिकता वा हीनता देखिए है । पर धूलि, वाल, रेत वा तुच्छ पाषाणादिक इनिविर्षे रुक्षगुण की अधिकता वा हीनता देखिए हैं । तैसे ही परमाणू विर्षे भी स्निग्ध रूक्षगुंण को अधिकता हीनता पाइए है ! ते स्निग्ध - रूक्षगुण धणुकादि स्कंधपर्याय का परि गमन का कारण हो हैं। बहुरि चकार तै. स्कंध ते बिछुरने के भी कारण हो हैं । स्निग्धरूप दोष परिमाणनि का वा रूक्षरूप दोय. परमाणू का एक रूक्ष वा एक स्निग्ध परमाणू का परस्पर जुडने रूप बंध होते द्वयणुक स्कंध हो है। जैसे संख्यात, असंख्यात, अनंते परिमाणनि का स्कंध भी जानना । तहाँ स्निग्ध गण वो रूक्षगणं अंशनि की अपेक्षा संख्यात, असंख्यात, अनंत भेद कौं लीए है।
एयगरणं तु जहरणं, णिद्धत्तं बिगुण-तिगुण-संखेज्जाs- । - संखेज्जाणतगुणं, होंदि तहा रुक्खभावं' च ॥६१०॥ १. स्निग्धमत्वाचः' तत्त्वार्थसूत्र : अध्याय-४, सूत्र-३३ ।
LammaNSTAMOELAAMALNIRNATICSunarunic.....