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[ गोम्मटसार शोधका गाया ६०६ इहां तर्क - जो वखन अमूर्तीक है, तहां कहिए है, असा कहना भी प्रयुक्त है, जाते वचन मूर्तीक करि ग्रह्मा जाय हैं । या मूर्तीक द्रव्य करि रुक है वा नष्ट हो है; तातें भूर्तीक ही है । बहुरि द्रव्य भाव के भेद ते मन भी दोय प्रकार है। तहां भावमन तौ लब्धि उपयोग रूप है, सो क्षयोपशमादिक पुद्गलीक निमित्त तैं हो है । ताते पुद्गलीक ही है । बहुरि ज्ञानावरण, वीर्यातराय का क्षयोपशम पर अंगोपांग नामा नामकर्म का उदय, इनिके निमित्त ते गुण - दोष का विचार, स्मरण, इत्यादिकरूप सन्मुख भया, जो आत्मा, ताकौं उपकारी जे पुद्गल, सो मनरूप होइ परिणवै हैं। तातें द्रव्यमन भी पुद्गलीक है। .
...इहां कोऊ कहै कि मन तौ एक जुदा ही द्रव्य है, रूपादिकरूप न परिण हैं। अणूमात्र है । तहां प्राचार्य कहैं हैं -'तीहि मन स्यौं प्रात्मा का संबंध है कि नाहीं है? जो संबंध नाहीं है तो आत्मा कौं उपकारी न होइ, इन्द्रियनि विर्षे प्रधानता कौं ने धर और जो संबंध है तो, वह तो अणूमात्र है, सो एकदेश विर्षे उपकार करेगा अन्य प्रदेशनि विर्षे कैसे उपकार कर है ? .. .
तहाँ तार्किक कहैं है -- अमूर्तीक, निष्क्रिय प्रात्मा का एक प्रदृष्टनामा गुण है। सो अदृष्ट जो कर्म ताका वश करि तिस मन का कुमार का चक्रवत परि: भ्रमण करै है, सो असा कहना भी प्रयुक्त है । अणूमात्र जो होइ ताके भ्रमण की समर्थता. नाहीं । बहुरि अमूर्तीक निष्क्रिय का अदृष्ट गुण कहा, सो औरनि के क्रिया का प्रारंभ करावने की समर्थ न होई । जैसे पवन आप क्रियावान है, सो स्पर्श करि वनस्पती कौं चंचल कर है, सो यह तो अणूमात्र निष्क्रिय का गुण सो पाप क्रियावान नाहीं, अन्य कौं कैसे क्रियावान प्रवर्ताव है ? तातें मन पुद्गलीक ही है। : बहुरि वीर्यातराय पर ज्ञानावरण का क्षयोपशम अर अंगोपांगनामा नामकर्म के उदय, तीहि करि संयुक्त जो आत्मा, ताके निकसतो जो कंठ संबंधी उस्वासरूप पवन, सो प्रारण कहिए । बहुरि तोहि पवन करि बाह्य पवन की अभ्यंतर करता निस्वासरूप पवन, सो अपान कहिए । ते प्राण-अपान जीवितव्य कौं कारण हैं । ताते उपकारी हैं; सो मन अर प्राणापान ए मूर्तीक हैं । जातें भय के कारण बज्रपातादिक मूर्तीक, तिनितें मन का रुकना देखिए है। बहुरि भय के कारण दुर्गंकादिक, तीहिं करि वा हस्तादिक ते मुख के पाच्छादन करि वा श्लेष्मादिक करि प्राण-अपान का रुकना देखिये है, ताते, दोऊ मूर्तीक ही हैं। अमूर्तीक होइ तौ मूर्तीक करि, रुकना न
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