________________
१६२ ]
गोम्मटसार जोक गाथा ६४
सा है | से अवगाह क्रियावान जे जीव - पुद्गलादिक द्रव्य तिनिकै अवगाह क्रिया का साधनभूत प्रकाश द्रव्य है ।
इहां प्रश्न - जो भयमाह क्रियावान तो जीव - पुद्गल हैं । तिविक्र ter युक्त का है । बहुरि धर्मादिक द्रव्य तो निष्क्रिय हैं, नित्य सम्बन्ध को धरे हैं, नवीन नाहीं आए, जिनिक अवकाश देना संभव जैसे इहां कैसे कहिये ? सो कहीं
अवकाश
ताका समाधान - जो उपचार करि कहिए हैं, जैसे गमन का प्रभाव होते संतें भी सर्व सद्भावको अपेक्षा आकाश को सर्वगत कहिए हैं। तैसें धर्मादिक द्रव्यनि के अवगाह क्रिया का प्रभाव होते संते भी लोक विषं सर्वत्र सद्भाव की अपेक्षा अवगाह का उपचार कीजिए हैं ।
MESOF
D... P वहां प्रश्न - जो भवकाश देना आकाश का स्वभाव है, तो जादिक क पाषादि का भर भीति इत्यादिक करि गऊ इत्यादिकनि का रोकना कैसे हो है ! सो रोकना तौ देखि रहे हैं । तातै आकाश तो तहां भी था, पाषाणादिक को अव काशन दीया, तब प्रकाश का श्रवगाह देता स्वभावन रह्या
"
53
"तहां उत्तर – जो प्राकाश तो अवगाह देइ, परन्तु पूर्वं तहां अवगाह करि तिष्ठ है, वज्रादिक स्थूल हैं, ताते परस्पर रोक हैं । यामै श्राकाश का श्रवगाह देने का स्वभाव गया नाहीं; जातें वहां ही अनंत सूक्ष्म पुद्गल हैं, ते परस्पर श्रवगाह देते हैं ।
बहुरि प्रश्न - जो जैसे हैं तो सूक्ष्म वुद्गलादिकनि के भी अवगाहहेतुत्व स्वभाव आया । आकाश ही का असाधारण लक्षरण कैसे कहिए है ?
तहां उत्तर - जो सर्व पदार्थनि को साधारण प्रवगाहहेतुत्वः इस श्राकाश ही का असाधारण लक्षण हैं। और द्रव्य सर्व द्रव्यनि को अवगाह देने की समर्थ नाहीं । इहां प्रश्न जो लोकाकाश तो सर्व द्रव्यनि को प्रवाह देता नाहीं, तहां भैसा लक्षण कैसे संभव ?
Ri
1
ww
ताकां समाधान जो स्वभाव का परित्याग होइ नाहीं । तहां कोई द्रव्य होता तो माह देता, कोई द्रव्य तहां गमनांदि न करें, तो श्रवमाह कौन को देने तिसका तो माह देने का स्वभाव पाइए है। बहुरि सर्व द्रव्यनि को वर्तना क्रिया starat भूत free fर काल हव्य है ।
अपी