________________
सम्परामानका भावाटीका ]
[ ६६ आदि देकरि भव्य सिद्ध अपेक्षा कथन जानना । बहुरि सामान्य संसारी अपेक्षा दोऊ जायगे समानता संभव है । बहुरि सूक्ष्मनिमोद वर्गरणा का कथन कहिए हैं-" .
सो इहां भव्य सिद्ध अपेक्षा तो कथन है नाहीं । तातै जघन्य सूक्ष्मनिगोदवर्गणा लोक विर्षे होइ वा न होइ, जो होइ तो एक वा दोय वा तीन उत्कृष्ट प्रावली का असंख्यातवां भाग प्रमाण होइ । आगै जैसे संसारीनि की अपेक्षा प्रत्येक वर्गणा का कथन कीया, तैसे ही यवमध्य ताई अनंतानन्त. वर्मणा भए, उत्कृष्ट विर्षे एक एक बधावना । पीछे उत्कृष्ट सूक्ष्मवर्गणा पर्यंत एक एक घंटावना । सामान्यपर्ने सर्वत्र उत्कृष्ट का प्रमाण पावली का असंख्यातवां भाग कहिये । इहां सर्वत्र संसारी सिद्ध कौं योग्य असी जो प्रत्येक बादर निगोद, सूक्ष्मनिगोद वर्गरणा तिनिका यव प्राकार प्ररूपमा वि गुण्डहानि का नीलामिल हैं अनन्त गुणा जानना। नाना गुण हानिशलाका का प्रमाण यवमध्य ते ऊपरि या नीचे पावली का असंख्यातवां भाग प्रमाण जानना।
भावार्थ-संसारी अपेक्षा प्रत्येकवर्गणा, बादरनिगोदवर्गणा, सूक्ष्मनिगोदवर्गणा विर्षे जो यवमध्य प्ररूपरणा कही, तहां लोक विर्षे पावने की अपेक्षा जेते एक एक परमाणू बधने रूप जे वर्गणा भेद तिनि भेदनि का जो प्रमाण सो तो द्रव्य है । पर जिनि वर्गगानि विर्षे उत्कृष्ट पाचने की अपेक्षा समानता पाइये, तिनिका समूह सो निक, तिनिका जो प्रमाण, सो स्थिति है । बहुरि एक गुणहानि विर्षे निधेकनि का जो प्रमाण सो गरगहानि का गच्छ है । ताका प्रमाण जीवराशि से अनन्त गुणा है । बहुरि यवमध्य के ऊपरि वा नीचे गुणहानि का प्रमाण, सो नानागुणहानि है । सो प्रत्येक प्रावली का असंख्यातवां भागमात्र है। असे द्रव्यादिक का प्रमाण जानि, जैसें निषेकनि विर्षे द्रव्य प्रमाण ल्यावने का विधान है । तैसे उत्कृष्ट पावने की अपेक्षा समान रूप जे वर्गरणा, तिनिका प्रमाण यवमध्य तें ऊपरि वा नीचे वय घटता क्रम लीए जानना। " इहां प्रश्न - जो इहां तो प्रत्येकादिक तीन संचित वर्गरणानि के अनंतें भेद कहे, एक एक भेदरूप वर्गणा लोक विर्षे प्राबली का असंख्यातवा भाग प्रमाण सामान्य पर्ने कही । बहुरि पूर्व मध्यभेदरूप सचित्तवर्गणा सर्व असंख्यात लोक प्रमाण ही कही सो उत्कृष्ट जघन्य बिना सर्व भेद मध्यभेद विर्षे माय गए; तहाँ असा प्रमाण कैसें संभवै ?