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संज्ञानवद्रिका भाषाटोका ]
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प्रसंख्यातवां भाग प्रमाण पाइए है । इहां प्रत्येक शरीर, बादरनिगोद, सूक्ष्मनिगोद, इन तीन वित्तवर्गखानि का मध्य भेद वर्तमान काल विषै असंख्यात लोक प्रमाण पाइए है। बहुरि महास्कंध वर्गणा वर्तमान काल में जगत विषै एक ही है। सो भवनवासीनि के भवन देवनि के विमान आठ पृथ्वी, मेरु गिरि, कुलाचल इत्यादिकनि का एक स्कंध रूप है ।
इन्हीं प्रश्न जो जिनि के प्रसंख्यात, असंख्यात योजननि का, अन्तर पाइए; fafter एक स्कंध कैसे संभव है ?
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साक ं उत्तर -- जो मध्य विषै सूक्ष्म परमाणू है, सो वे विमानादिक पर सूक्ष्म परमाणू, तिनि सबनि का एक बंधान है । तातें अंतर नाहीं, एक स्कंध हैं । सो अंसा ओ एक स्कंध है, ताही का नाम महास्कंध है ॥
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हेमिक्करसं पुण, रूवहियं उवरिमं जहणं खु । sia तेवीसवियप्पा, पुग्गलवा है जिगदिट्ठा ॥ ६०१ ॥
श्रधस्तनोत्कृष्टं पुनः रूपाधिकमुपरिमं जघन्यं खलु
इति त्रयोविंशतिविकल्पानि पुद्गलव्यापि हि जिनदिष्टानि ॥ ६०१ ॥
टीका - तेईस वर्गेणानि विषै अणुवा बिना अवशेष वर्गेणानि के जो नोचे का उत्कृष्ट भेद होइ, तामैं एक अधिक ताके ऊपर जो वर्गरणा, ताका जघन्य भेद हो है । अँसे तेईस वर्गणा भेद को लीए पुद्गल द्रव्य, जिनदेवने कहे हैं । इनि विषे प्रत्येक वर्गरणा र बादरनिगोद वर्गमा अर सूक्ष्मनियोंद वर्गगा ए' तीन सचित्त हैं; जीव सहित हैं, सो इनिका विशेष कहिए हैं
भए,
प्रयोग केवली का अंतसमय विषे पाइये असी जघन्य प्रत्येक वर्गरणा, सो लोक विषे होइ भी वा न भी होइ, जो होइ तो एक ही होइ वा दोय होइ वा तीन होइ उत्कृष्ट होइ तौ च्यारि होइ । बहुरि जघन्य तें एक परमाणू अधिक जैसी मध्य प्रत्येक वर्ग, सो लोक विष होइ वा न होइ; जो होइ तो एक वा दोय वा तीन वा उत्कृष्ट पर्ने व्यारि होइ, भैंसें ही एक एक परमाणु का बधाव तें इस ही अनुक्रम, तें. जब अनंत aणा होइ, तब ताके अनंतर जो एक परमाणू अधिक वर्गणा, सो लोक विषै होइ वा मैं होइ, जो होइ तो एक वा दोय वा तीन वा च्यारि वा उत्कृष्टपने पांच होंइ । जैसे एक एक परमाणू बघतें अनंतवर्मणा पर्यंत. पंच ही उत्कृष्ट हैं । ताके अनन्तरि जो