________________
THEचात
६६०
[ गोम्मटसार जोक्षकारुड गाया ५६३-५६४ तहां प्रथम कहा जो नाम अधिकार, ताहि कहैं हैं -- जीवाजीयं दध्वं, रूवारूवि ति होदि पत्तेयं । संसारत्या रूवा, कम्मविमुहका अरूवगया ॥५६३॥
जीवजीवं द्रव्य, रूप्यरूपीति भवति प्रत्येकम् ।
संसारस्था रूपिरणः, कर्मविमुक्ता अरूपगताः ।।५६३।। टीका - सामान्य संग्रह नय अपेक्षा द्रव्य एक प्रकार है । बहुरि सोई द्रव्य भेद विवक्षा करि दोय प्रकार है । एक जीव द्रव्य, एक अजीवद्रव्य, तहाँ जीव द्रव्य दोय प्रकार है – एक रूपी, अर एक अरूपी, तहां जे जीव संसार अवस्था विर्षे. तिष्ठे हैं । तिनिके मूर्तीक पुद्गल का संबंध पाइए है । तातै तिनकौं रूपी कहिए । बहुरि सिद्ध भगवान पुद्गलीक कर्म करि मुक्त भए हैं । तातें तिनको अरूपी कहिए । बहुरि अजीय द्रव्य भी रूपी, अरूपी के भेद हैं दोय प्रकार है।
सो कहिए हैं -- प्रज्जीवेस य रूवी, पम्गलदवाणि धम्म इदरो वि। आगासं कालो वि य, चत्तारि अरूविणो होति ॥५६४॥
अजीवेषु रूपोरिण, पुद्गलद्रध्याणि धर्म इतरोऽपि ।
शाकाशं कालोऽपि च, चत्वारि अरूपाणि भवति ।।५६४॥ टोका -- अजीव द्रव्यनि विर्षे पुद्गल द्रव्य तौ रूपी है । स्पर्श, रस, गंध, वर्ण गुरण संयुक्त मूर्तीक है। बहरि धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य, आकाश द्रव्य, काल द्रव्य ए च्यारि अरूपी हैं । स्पर्श, रस, गंध, वर्ण रहित अमूर्तीक हैं। इहाँ उक्त च---
वर्णगंधरसस्पर्शः, पूरणं गलनं च यत् ।
कुर्वति स्कंधवस्तस्मात्पुद्गलाः परमारंगवः ।। अर्थ - पूरण अर गलन कौं जो करै, सो पुद्गल कहिए । युक्त होने का नाम पूरण है, पर दिछुडने का नाम गलन है, जात वर्ण, गंध, रस, स्पर्श मुणनि करि पूरण गलन कौं स्कंधवत् करै है । जैसें स्कंध विर्षे कोऊ परमाणू मिले हैं, कोऊ बिछुरें हैं । तैसें परमाणु विर्षे कोऊ वर्णादिक का भेद उत्पन्न हो है, सो मिले है । कोऊ नष्ट हो है, सो बिछुरै है । तातें परमाणु हैं, ते पुद्गल कहे हैं ।