________________
free )
* ફ્છે
पंच प्रकार है । तहां द्रव्य परिवर्तन दोय प्रकार है - एक कर्म द्रव्य परिवर्तन, एक नोकर्म द्रव्य परिवर्तन 1.
तहां नोकर्म द्रव्य परिवर्तन कहिए हैं
―
किसी जीव दारिकादिक तीन शरीरनि विषे किसी ही शरीर संबंधी छह पर्याप्ति रूप परिणमने करें योग्य पुद्गल किसी एक समय में ग्रहे, ते स्निग्ध, रूक्ष, वर्ण, गंधादिक करि तीव्र, मंद, मध्य भाव लीए, यथा संभय ग्रहे, बहुरि ते द्वितीयादि समयनि विषे निर्जरा रूप कीए । बहुरि अनंत बार अगृहीतनि को ग्रहि करि छोडे, अनंत बार मिश्रति की ग्रहि करि छोड़ वीषि ग्रहीतानि कौं अनंत बार नहि करि छोड़, जैसे भए पीछे जे पहिले समय पुद् गल ग्रहे, ते पुद् गल तसे ही स्निग्ध, रूक्ष, गंधादि करि तिस ही जीव के नोकर्म भाव को प्राप्त होइ, तितना समुदायरूप काल मात्र नोकर्स द्रव्य परिवर्तन है । जीव करि पूर्वे हे असे परमाणु जिन समयबद्ध रूप स्कंधनि विषे होंइ, ते गृहीत कहिए। बहरि जीव करि पूर्व न ग्रहे जैसे परमाणू face होंइ, ते अगृहीत कहिये । गृहीत अर अगृहीत दोऊ जाति के परमाणू जिनि विष हों, ते मिश्र कहिए ।
19
इहां कोऊ कहै अगृहीत परमाणू कैसे हैं ?
ताका सामाधान - सर्व जीवराशि के प्रभास को समय प्रबद्ध के परमाणुनिका -परिमाण करि गुरिणए । बहुरि जो प्रमाण झावें, ताक अतीत काल के समय नि का परिमाण करि गुणिए, जो प्रमाण होइ, तिसतें भी पुद्गल द्रव्य का प्रमाण अनंत गुरंगा ..है, जाते जीव राशि तें अनंत वर्गस्थान गए पुद्गलराशि हो हैं । ताते अनादिकाल नाना जीवन की अपेक्षा भी अगृहीत परमाणू लोक विष बहुत पाइए है। बहुरि एक जीव का परिवर्तन काल की अपेक्षा नवीन परिवर्तन प्रारंभ भया; तब सर्व ही अगहीत भए । पीछे ग्रहे तेई ग्रहीत हो हैं । सो इहां जिस अपेक्षा गृहीत, मगहीत, मिश्र .- कहे हैं; सो यथासंभव जानना । अब विशेष दिखाइए हैं
पुद्गल परिवर्तन का काल तीन प्रकार है । तहां प्रगृहीतके ग्रहण का काल, सो अगृहीत ग्रहण काल है । गृहील के ग्रहण का काल, सो गृहीत ग्रहण काल है। मिश्र के ग्रहण का काल, सो मिश्र ग्रहण काल है । सो इनिका परिवर्तन जो पलटना सो कैसे हो है ? सो अनुक्रम यंत्र करि दिखाइए हैं
C