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सोलहवां अधिकार : भव्य-मार्गणा . इष्ट फलत सब होत कुनि, नष्ट अनिष्ट समाज ।"
जास नामनै सो भलो, शांति नाथ जिमराज ॥... .. प्रागं भव्य मार्गणा का अधिकार च्यारि माथानि करि कहै हैं
भविया सिद्धी जेसि, जीवाणं ते हवंति भवसिद्धा। तविवरीयाऽभव्वा, संसारादो ण सिझति ॥५५७॥
भव्या सिद्धिर्येषां, जीवामाई ते भवन्तिः भवसिद्धाः । : तद्विपरीसर अभव्याः, संसाराग्न सिद्धयन्तिः ॥५५॥
टोका - भव्याः कहिए होनेफोग्य का होनहार है: सिद्धि कहिये अनंत चतुष्टय रूप स्वरूप की प्राप्ति जिनके, ते भव्य सिद्ध जानने । याकरि सिद्धि की प्राप्ति पर योग्यता गरि भाषांग के द्विनिगरा कहा है। .. .... - . भावार्थ - भव्य दोय प्रकार हैं । केई तो भव्य असें हैं जे मुक्ति होने को केवल योग्य ही हैं; परि कबहूँ सामग्री कौंपाइ मुक्त न होंइ । बहुरि केई भव्य असे हैं, जे काल पाइ मुक्त होहिंगे । बहुरि तद्विपरीताः कहिए. पूर्वोक्त दोऊ लक्षण रहित जे जीव मुक्त होने योग्य भी नहीं पर मुक्त भी होते नाही, ते अभव्य जानने । तात ते वे अभव्य जीव संसार से निकसि कदाचित मुक्ति को प्राप्त न हो हैं; असा ही केई द्रव्यत्व भाव है।
.. ___ इहां कोऊ भ्रम करगा जो अभव्य मुक्त न होइ तो दोऊ प्रकार के भव्यनि के तौ मुक्त होना ठहर्धा तौ जे मुक्त होने की योग्य कहे थे, तिन भव्यनि के भी कबहूं तो मुक्ति प्राप्ति होसी सो असे भ्रम की दूर करें हैं
. भव्वत्तणस्त जोगा, जे जीवा ते हवंति भवसिद्धा। ' ण हु मलविगमे णियमा, ताणं कणभोवलाणमिव ॥५५॥ .: . . . . भव्यत्वस्य योग्या, ये जीवास्ते भवन्ति भवसिद्धाः । ....... नहि. मलविगमे नियमात, तेषां कनकोपलानामिव ।।५५८॥