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योगमटसार जीवकाष्ठ गाया ५३९.५४०
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प्रमाण हो है। बहुरि काल प्रमाण करि अशुभ तीन लेण्यावाले जीव, अतीत काल के समयनिका प्रमाण से अनंत गुपे हैं । इहां भी पूर्वोक्त हीन क्रम जानना । बहुरि इहां प्रमाणराशि अतीत काल, फलराशि एक शलाका, इच्छाराशि अपने - अपने जीवनि का प्रमाण कोए, लब्धराशिमात्र अनंत शलाका भई । बहुरि प्रमाण एक शलाका, फल एक अतीत काल, इच्छा अनंत शलाका करि, 'लब्ध राशि अनंत अतीत कालमात्र कृष्णादि लेश्यावाले जीवनि का प्रमाण हो है ।
केवलणाणाणंतिमभागा भावाद किण्ह-तिय-जीवा । तेउतिया संखेज्जा, संखासंखेज्जभागकमा ॥५३॥
केवलज्ञानानंतिमभागा भावात्तु कृष्णत्रिकजीवाः ।
तेजस्त्रिका असंख्येयाः संख्यासंख्येयभागक्रमाः ॥५३९।। टीका - बहुरि भाव मान करि अशुभ तीन लेश्यावाले जीव, केवलज्ञान के अविभाग प्रतिच्छेदनि का प्रमाण के अनंतवें भाग प्रमाण हैं । इहां भी पूर्ववत् हीन क्रम जानना । बहुरि इहां प्रमाण राशि अपने - अपने लेपयावाले जीवनि का प्रमाण, फल एक शलाका, इच्छा केवलज्ञान कीए, लब्ध राशिमात्र अनन्त प्रमाण भया, इसकौं प्रमागराशि करि फलराशि एक शलाका, इच्छाराशि केवलज्ञान कीए केवलज्ञान के अनन्त भाग मात्र कृष्णादि लेश्यावाले जीवनि का प्रमाण हो है। बहुरि तेजोलेश्या प्रादि तीन शुभलेश्यावालों का प्रमाण असंख्यात है, तथापि तेजोलेश्यावालों के संख्यातवें भाग पद्मलेश्या वाले हैं, पालेश्या बालों के असंख्यातवें भाम शुक्ल लेश्यावाले हैं । अॅसे द्रव्य करि शुक्ललेश्यावालों का प्रमाण कह्या ।
जोइसियादो अहिया, तिरक्खसण्णिस्स संखभागोदु । सूइस्स अंगुलस्स य, असंखभागं तु तेउतियं ॥५४०।।
ज्योतिष्कतोऽधिकाः, तिर्यक्संजिनः संख्यभागस्तु ।
सूचेरंगुलस्य. च, असंख्यभामं तु तेजस्त्रिकम् ।।५४०॥ टीका - तेजो लेश्यावाले जीव ज्योतिष्क राशि तें कि अधिक हैं । कैसे ? सो कहिए हैं - पैसठि हजार पाचसै छत्तीस प्रतरांगुल का भाग, जगत्प्रतर कौं दीए, 'जो प्रमाण होइ, तितने तो ज्योतिषी देव । बहुरि धनांगुल का प्रथम वर्गमूल करि
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