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सम्यग्ज्ञानवधिका भाषाटीका ]
रहै, तिनिका तीन भाग कीजिए, तहां एक एक समान भाग एक एक लेश्या कौं दोजिए । बहुरि जो एक भाग रह्या, ताकौं प्रावली का असंख्यातवां भाग का भाग दीजिये, तहां एक भाग को जुदा राखि अवशेष बहुभाग रहे, सो पूर्वोक्त करण लेश्या का समान भाग विर्षे मिलाइए, बहुरि अवशेष जो एक भाग रह्या, ताकौं प्रावली का असंख्यातवां भाग का भाग दीजिए, तहां एक भाग कौ जुदा राखि, अवशेष बहुभाग पूर्वोक्त नीललेश्या का समान भाग विष मिलाइए । बहुरि जो एक भाग रह्या, सो पूर्वोक्त कपोत लेश्या का समान भाग विषं मिलाइए, असे मिलाए, जो जो प्रमाण भया, सो सो कृष्णादि लेश्यानि का काल जानना ।
अब इहां राशिक करना । तहां तीनू लेश्यानि का काल जोडै, जो प्रमाण भया, सो तौ प्रमाणराशि, बहुरि अणुभ लेश्यावाले जीवनि का जो किंचित् ऊन संसारी जीव मात्र प्रमाण सो फलराशि । बहुरि कृष्णलेश्या का काल का जो प्रमाण सोई इच्छाराशि, तहां फल करि इच्छा कौं गुणे, प्रमाण का भाग दीए, लब्धराशि किंचित् ऊन तीन का भाग अशुभ लेश्यावाले जीवनि का प्रमाण कौं दीए, जो प्रमाण भया, तितने कृष्णलेश्यावाले जीव जानने । जैसे ही प्रमाणराशि, फलराशि, पूर्वोक्त इच्छाराशि अपना - अपना काल करि नील वा कपोत लेश्या विषं भी जीवनि का प्रमाण जानना । प्रैस काल अपेक्षा द्रव्य करि अशुभलेश्यावाले जीवनि का प्रमाण कह्या है ।
खेत्तादो असहतिया, अणंतलोगा कमेण परिहीणा। कालादोतोदावो, अणंतगुणिदा कमा हीणा ॥५३॥
क्षेत्रतः अशुभत्रिका, अनंतलोकाः क्रमेण परिहीनाः ।
कालादतीतादनंतमुरिणताः क्रमादीनाः ।।५३८॥ टोका - क्षेत्र प्रमाण करि अशुभ तीन लेश्यावाले जीव अनंत लोक मात्र जानने । लोकाकाश के प्रदेशनि से अनंत गुण हैं; तहां क्रमते हीनकम जानने । कृष्णलेश्यावालों से कि घाटि नील लेश्यावालों का प्रमाण है । नील लेश्यावालौं से किछु घाटि कोत लेश्यावालों का प्रमाण है । बहुरि इहां प्रमाणराशि लोक, फलराशि एक शलाका, इच्छाराशि अपने - अपने जीवनि का प्रमाण कीएं, लब्धिराशिमात्र अनंत शलाका भई । बहुरि प्रमाण एक शलाका, फल एक लोक, इच्छा अनंत शलाका कीएं, लब्धराशि अनंत लोक मात्र कृष्णादि लेश्यावाले जीवनि का