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सम्यहानचन्द्रिका सावाटीका
टोका -- नील लेश्या का उत्कृष्ट अंश करि मरे, ते जीव पंचम पृथ्वी का विचरम पटल का अंध्र नामा इंद्रक विर्षे उपजे हैं ।। केई पांचवां पटल विर्षे भी उपज हैं। अरिष्ट पृथ्वी का अंत का पटल विर्षे कृष्ण लेश्या का जघन्य अंश करि मरे हुए ही कई जी गई हैं। पसना विशेष जानना । बहुरि नीलः लेश्या का जघन्य अंश करि मरे, ते जीव. वालुका पृथ्वी का अंत का पटलः वि संप्रज्वलित नामा इंद्रका विर्षे उपजें हैं । बहुरि नील लेश्या का मध्यम अंश करि मरे, ते जीयः बालुका प्रभा पृथ्वी के संप्रज्वलित इद्रक तैं नीचें पर चौथी पृथ्वी का सातौं पटल पर पंचमी पृथ्वी का अंध्र इद्रक के ऊपरि यथायोग्य उपज हैं ।।
वर-काश्रोदसमुदा, संजलिदं जांति तदिय-रिपरयस्स । सीमंत अवरमुदा, मझे. सज्झेरण जायते ॥५२६॥
घरकापोतांशमताः, संज्वलितं यान्ति तृतीयनिरयस्य ।
सोमन्तमवरमृता, मध्ये मध्येन जायन्ते ॥५२६।। टीका - कापोत लेश्या का उत्कृष्ट अंश करि मरे, हे जीव तीसरी पृथ्वी का पाठवां द्विचरम पटल ताके संज्वलित नामा इंद्रक विषै उपज हैं । केई अंत का पटल संबंधी संप्रज्वलित नाभा इद्रक विर्षे भी उपजे है। इतना विशेष जानना । बहुरि कापोत लेश्या का जघन्य अंश करि मरें, ते जीव पहिली धर्मा पृथ्वी का पहिला सीमतक नामा इंद्रक, तिस विौं उपज हैं । बहुरि कापोत लेश्या का मध्यम अंश करि मरे, ते जीव पहिला पृथ्वी का सीमंत इद्रक ते नीचं बारह पटलनि विर्षे, बहुरि मेघा तीसरी पृथ्वी का द्वि चरम संज्वलित इद्रक तें ऊपरि सात पटलनि विर्षे, बहुरि दूसरी पृथ्वी का ग्यारह पटल, तिन विर्षे यथायोग्य उपजै हैं ।
किण्ह-चउक्काणं पुण, मभंस-मुवा हु भवणगादि-तिये । पुढवी-माज-वणफवि-जीवेसु हवंति खलु जीवा ॥५२७॥
कृष्णचतुष्काणां पुनः, मध्यांशमृता हि भयानकादित्रये । पृथिव्यवनस्पतिजीवेषु भवन्ति खलु जोवाः ॥५२७॥
टोका --- पुनः कहिये यह विशेष है - कृष्ण - नील - कपोत नील लेश्या, तिनके मध्यम अंश करि मरे असे कर्म भूमियां मिथ्यादृष्टी तिर्यच वा मनुष्य अर