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वोमरसार बीवका गाथा ५१%
आगे गति अधिकार ग्यारह सूत्रनि करि कहैं है - लेस्सारणं खलु अंसा, छन्वीसा होति तत्थ मज्झिमया । आउगबंधरणजोग्गा, अठ्ठठ्ठवगरिसकालभवा ॥५१८॥
लेश्यानां खलु अंशाः, षड्विंशतिः भवन्ति तत्र मध्यमकाः । भागयोग्या, त्या अष्टापकर्षकालभवाः ॥५१॥
टीका - लेश्यानि के छब्बीस अंश हैं ! तहां छहौं लेश्यानि के जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट भेद करि अठारह अंश हैं। बहुरि कपोतलेश्या के उत्कृष्ट अंश ते आग पर तेजो लेश्या के उत्कृष्ट अंश ते पहिले कषायनि का उदय स्थानकनि विर्षे पाठ मध्यम अंश हैं, जैसे छब्बीस अंश भए। तहां आयुकर्म के बंध की योग्य आठ मध्यम अंश जानने । तिनिका स्वरूप प्रागें स्थानसमुत्कीर्तन अधिकार विर्षे भी कहेंगे । ते पाठ मध्यम अंश, अपकर्ष काल आठ, तिनि विर्षे संभव है। वर्तमान जो भुज्यमान प्रायु, ताको अपकर्ष, अपकर्ष कहिए । घटाइ घटाइ आगामी पर भव की आयु कौं बांधैं ; सो अपकर्ष कहिए।
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.. अपकर्षनि का स्वरूप दिखाइए हैं-- तहां उदाहरण कहिए हैं - किसी कर्म भूमिया मनुष्य वा तिथंच की भुज्यमान प्रायु पैसठि से इकसठि (६५६१) वर्ष की है। तहां तिस आयु का दोय भाग गएं, इकईस सै सित्तासी वर्ष रहै। तहां तीसरा भाग कौं लागते ही प्रथम समय स्यों लगाइ अंतर्मुहुर्त पर्यंत कालमात्र प्रथम अपकर्ष है । तहाँ परभव संबंधी आयु का बंध होई । बहुरि जो तहां न बंधे तौ, तिस तीसरा भाग का दोय भाग गएं, सात से गणतीस वर्ष आयु के अवशेष रहै, तहां अंतर्महर्त काल पर्यंत दुसरा अपकर्ष, तहां परभव की आयु बांध । बहुरि तहां भी न बंधै तो तिसका भी दोय भाग गएं दोय से तियालीस वर्ष प्रायु के अवशेष रहैं, अंतर्मुहूर्त काल मात्र तीसरा अपकर्ष विर्षे परभव का प्रायु बांध । बहुरि तहां भी २ बंधे तौ, तिसका भी दोय भाग गएं इक्यासी वर्ष रहैं, अंतर्मुहर्त पर्यंत चौथा अपकर्ष विर्षे पर भव का आयु बांधै । जैसे ही दोय दोय भाग गएं, सत्ताईस वर्ष रहैं वा नव वर्ष रह वा तीन वर्ष रहैं वा एक वर्ष रहैं अंतर्मुहुर्तमात्र काल पर्यंत पांचवां वा छठा वा सातवां वा
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१. पखंडागम - अवता पुस्तक १, पृष्ठ ३६२, गाथा सं. २०६३