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यामनिका भाषाटीका ।
| ५६ लोकानामसंख्येयान्युक्ष्यस्थानानि धायगररिण भवति ।
तत्र क्लिष्टानि अशुभानि, शुभानि विशुद्धानि तदालापात् ।।४६६॥ टोका -- कषाय संबंधी अनुभागरूप उदयस्थान असंख्यात लोक प्रमाण है। तिनिकौं यथायोग्य असंख्यात लोक का भाग दीजिए । तहां एक भाग बिना अवशेष बहुभाग मात्र तौं संक्लेश स्थान हैं। ते परिण असंख्यात लोक प्रमाण हैं । बहुरि एक भाग मात्र विशुद्धि स्थान हैं । ते परिण असंख्यात लोक प्रमाण हैं; जाते असंख्यात के भेद बहुत हैं । तहां संक्लेश स्थान तो अशुभलेश्या संबंधी जानने, अर विशुद्धिस्थान शुभलेश्या संबंधी जानने ।
तिव्वतमा तिव्वतरा, तिम्वा असहा सुहा तदा मंदा। मंदतरा मंदतमा, छारणगया हु पत्तेयं ॥५०॥
तीव्रतमारतीव्रतरास्तीत्रा अचुभाः शुभास्तथा मंकाः।
मंवतरा मंदतमाः, षट्रस्थानगता हि प्रत्येकम् ।।५.००। टीका - पूर्व जे असंख्यात लोक के बहभागमात्र अशुभ लेश्या संबंधी संक्लेश स्थान कहे; ते कृष्ण, नील, कपोत भेद करि तीन प्रकार हैं ।. तहां पूर्व संक्लेशस्थाननि का जो प्रमाण कहा, ताकौं यथायोग्य असंख्यात लोक का भाग दीएं, तहां एक भाग बिना अवशेष बहुभाग मात्र कृष्णलेश्या संबंधी तीव्रतम कषायरूप संश्लेशस्थान जानने । बहुरि तिस अवशेष एक भाग कौं असंख्यात लोक का भाग दीजिए, तहां एक भाग बिना अवशेष बहभाग. मात्र नील: लेश्या संबंधी तीव्रतार कपाकप संल्केश स्थान जानने । बहुरि तिस अवशेष एक भाग मात्र कपोत लेश्या संबंधी तीव्र कषायल्प संक्लेशस्थान जानने । बहुरि असंख्यात लोक का एक भाग मात्र शुभ लेश्या संबंधी विशुद्धि स्थान कहे; ते तेज, पद्म, सुक्ल भेद करि तीन प्रकार हैं। तहां पूर्व जो विशुद्धिस्थाननि का प्रमाण कह्या, ताकौं यथायोग्य असंख्यात लोक का भाग दीजिए, तहां एक भाग बिना अवशेष बहुभाग सान तेज़ो लोश्या सम्बन्धी मंदकषाय रूप विशुद्धि स्थान जानने । बहुरि तिस अवशेष एक भाग कौं असंख्यात लोक का भाग.दीजिए, तहां एक भाग बिना अवशेष भाग मात्र पद्मलेश्या संबंधी मंदतर कषायरूप विशुद्धिस्थान जानने । बहुरि तिस अवशेष एक भाग मात्र शुक्सलेण्या संबंधी मंदतम कषायरूप विशुद्धि स्थान जानने में तहां इलि कृष्णलेश्या अादि छह स्थाननि विर्षे एक -