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संम्पालामचन्द्रिका भाषाप्टोकर )
करते की समर्श है । तातें लिनि प्रकाणानि की उपमा देने योग्य नाही, असा समस्त लोक पर अलोक विर्षे अंधकार रहित केवल प्रकाश रूप केवलदर्शन नामा उद्योत जानना।
आग दर्शनमार्गणा विषं जीवनि की संख्या दोय गाथानि करि कहैं हैंजोगे चउरक्खाणं, पंचक्खाणं च खीणचरिमाणं । चक्खूणमोहिकेवलपरिमाणं ताण जाणं च ॥४८७ ॥
योगे धतुरक्षाणा, पंचाक्षाणां च क्षीणचरमारपाम् ।
चक्षुषामवधिकेवलपरिमाणं तेषां ज्ञानं च ॥४७॥ टीका - मिथ्यादृष्टि श्रादि क्षीणकषाय गुणस्थान पर्यंत चक्षुदर्शन ही है । तिनके दोय भेद हैं-एक शक्तिरूप चक्ष दर्शनी, एक व्यक्तिरूप चक्षुदर्शनी । तहां लब्धि अपर्याप्तक चौइंद्री अर पंचेंद्री तौ, शक्तिरूप चक्षुदर्शनी हैं, जातें नेत्र इंद्रिय पर्याप्ति की पूर्णता अपर्याप्त अवस्था विर्षे नाहीं है । तातें तहां प्रगटरूप चक्षुदर्शन न प्रवत है । बहुरि पर्याप्तक चौइंद्री पर पंचेंद्री व्यक्तरूप पक्षुदर्शनी है; जात तहां प्रकटरूप बक्षु. दर्शन हैं । तहां बेंद्री, तेंद्री, चौइंद्री, पंचेंद्री प्रावली का असंख्यातवां भाग प्रतरांगुल कौं दीएं, जो प्रमाण आवै, ताका भाग जगत्प्रतर कौं दीए, जो प्रमाण होइ, तितने हैं, तो चौइंद्री, पंचेंद्री कितने हैं ? असे प्रमाण राशि च्यारि, फलराशि त्रसनि का प्रमाण, इच्छाराशि दोय; तहां इच्छा कौं कलराशि करि मुणि, प्रमाण का भाग दीए, जो प्रमाण होइ, तितना चौइंद्री, पंचेंद्री राशि है । तहां बेंद्री प्रादि क्रम ते घटते हैं। तात किंचिदून करि बहुरि तिस विर्षे पर्याप्त जीवनि का प्रमाण घटावना । ताते तिस प्रमाण में स्यों भी किछु घटाये जो प्रमाण होइ, तितना शक्तिगत चक्षुदर्शनी जानने। बहुरि असे ही बस पर्याप्त जीवनि का प्रमाण कौं च्यारि का भाग देइ, दो मुणा करि, तामै किचिदून कीए जो प्रमाण होइ, तितना व्यक्तिरूप चक्षुदर्शनी है। इंद्रियमार्गणा विर्षे जो चौइंद्री, पंचेंद्रिय जीवनि का प्रमाण कहा है, तिनकौं मिलाए चक्षुदर्शनी जीवनि का प्रमाण हो है।
बहुरि अवविदर्शनी जीवनि का प्रमाण अवधिज्ञानी जीवनि का परिमाण के समान जानना।