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[ गोम्मटसार जौवकाण्ड गाया ४४१ टोका-विपुलमति ज्ञान भी छह प्रकार है -१. ऋजुमन कौं प्राप्त भया अर्थ का जानन हारा, २. ऋजु वचन कौं प्राप्त भया अर्थ का जानन हारा, ३. ऋजु काय की प्राप्त भया अर्थ का जानन हारा, ४. बहुरि वक्र मन कौं प्राप्त भया अर्थ का जानन हारा, ५. बहुरि वन वचन को प्राप्त भया अर्थ का जानन हारा, ६. बहुरि वक्र काय को प्राप्त भया अर्थ का जानन हारा । ए छह भेद हैं, जाते सरल बा चक्र मन, वचन, काय को प्राप्त भया पदार्थ कौं जानें है।
बहुरि तिन ऋजुमति विपुलमति ज्ञान के अर्थाः कहिए विषय ते शब्द कौं वा अर्थ को प्राप्त भए प्रगट हो हैं । कसै ? सो कहिए है - कोई भी सरल मन कर निष्पन्न होत संता विभाग संबंधी पदार्थनि कौं चितवन भया, वा सरल वचन करि निष्पन्न होत संता, तिनकों कहत भया वा सरल काय करि निष्पन्न होत संता तिनकों करत भया, पीछे भूलि करि कालांतर विर्षे यादि करने की समर्थ न हूवा पर प्राय करि ऋजुमति मनःपर्यय ज्ञानी को पूछत भया वा यादि करने का अभिप्राय कौं धारि मौन ही तें खडा रह्या, तौ तहां ऋजुमति मनःपर्ययज्ञान स्वयमेव सर्व को जाने है।
से ही सरल था वक्र मन, वचन, काय करि निष्पन्न होत संता त्रिकाल संबंधी पदार्थनि कौं चितवन भया वा कहत भया का करत भया । बहुरि भूलि. करि केतक काल पीछे यादि करने कौं समर्थ न हवा, आय करि विपुलमति मनःपर्ययज्ञानी के निकटि पूछत भया वा मौन नै खडा रह्या, तहां विपुलमति मनःपर्ययज्ञान सर्व कौं जाने, असे इनिका स्वरूप जानना ।
तियकालविसयरूवि, चिंतितं वद्रमाणजीवेण । उजुमदिणारणं जाणदि, भूदभविस्सं च विउलमदी ॥४४१॥
त्रिकालविषयरूपि, चितितं वर्तमानजीवेन ।
ऋजुमतिज्ञानं जानाति, भूतभविष्यम विपुलम्मतिः॥४४१॥ टीका - त्रिकाल संबंधी पुनल द्रव्य कौं वर्तमान काल विष कोई जीव चितवन कर है, तिस पुद्गल द्रव्य कौं ऋजुमति मनःपर्ययज्ञान जानें है ।' बहुरि त्रिकाल संबंधी पुद्गल द्रव्य कौं कोई जीव प्रतीत काल विष चितया था वा वर्तमान काल विर्षे चितवै है वा अनागत काल विर्षे चितवंगा, असे पुद्गल द्रव्य कौं विपुलमति मनःपर्ययज्ञान जाने है।
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