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सावरज्ञानचन्द्रिका भाषाटीमा
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Aaihanmatomum
टोका - बहुरि प्रकीर्णक नामा अंगबाह्य द्रव्यश्रुत, सो चोदह प्रकार है। सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वंदना, प्रतिक्रमण, दैनयिक, कृतिकर्म, दशवकालिक, उत्तराध्ययन, कल्प्यव्यवहार, कल्प्याकल्प्य, महाकल्प्य, पुंडरीक, महापुंडरीक, निषिद्धिका ।
तहां सं कहिए एकस्यपन करि प्रायः कहिए आगमन पर द्रव्यनि त निवृति होइ, उपयोग की आत्मा विर्षे प्रवृत्ति 'यह मैं ज्ञाता द्रष्टा हौं' असे आत्मा विर्षे उपयोग सो सामायिक कहिए । जातें एक हो आत्मा, सो जानने योग्य है; तातै ज्ञेय है। अर जानने हारा है. तातै ज्ञायक है । तातें आप कौं ज्ञाता द्रष्टा अनुभव है। .
अथवा सम कहिए राग-द्वेष रहित मध्यस्थ आत्मा, तिस विष आयः कहिए उपयोग की प्रवृत्ति; सो सामायिक कहिए, समाय है प्रयोजन जाका सो सामारिक कहिए । नित्य नैमित्तिक रूप क्रिया विशेष, तिस सामायिक का प्रतिपादक शास्त्र सो भी सामायिक कहिए ।
सो नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव भेद करि सामायिक छह प्रकार है।
तहां इष्ट - अनिष्ट नाम विर्षे राग द्वेष न करना । अथवा किसी वस्तु का सामायिक असा नाम धरना, सो नाम सामायिक है।
बहुरि मनोहर वा अमनोहर जो स्त्री - पुरुषादिक का प्राकार लीए काठ, लेप, चित्रामादि रूप स्थापना तिन विर्षे राग - द्वेष न करना। अथवा किसी वस्तु विर्षे यह सामायिक है; जैसा स्थापना करि स्थाप्यो हवा वस्तु, सो स्थापनासामायिक है । बहुरि इष्ट - अनिष्ट, चेतन • अचेतन द्रव्य विर्षे राग - द्वेष न करना । अथवा जो सामायिक शास्त्र की जाने हैं पर वाका उपयोग सामायिक विषं नाहीं है, सो जीव वा उस सामायिक शास्त्र के जाननेवाले का शरीरादिक, सो द्रव्य सामायिक है ।
बहुरि ग्राम, नगर, बनादिक इष्ट अनिष्ट क्षेत्र, तिन विर्षे राग द्वेष न करना, सो क्षेत्र सामायिक है ।
बहुरि बसंत आदि ऋतु पर शुक्लपक्ष, कृष्णपक्ष, दिन, वार, नक्षत्र इत्यादि इष्ट • अनिष्ट काल के विशेष, तिनिविर्षे राग-द्वेष न करना, सो काल सामायिक