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सम्यम्मानन्तिका भाषाटा ] एक एक तीर्थंकर के बारे दश दश महामुनि दारुण उपसर्ग सहि करि, बड़ी पूजा पाइ, समाधि करि प्रारण छोड़ि, विजयादिक अनुत्तर विमाननि विर्षे उपजें । तिनिकी कथा जिस अंग विधै होइ, सो अनुत्तरौपपादिक दशांग नामा नवमा अंग जानना । तहां श्रीवर्धमान स्वामी के बार-ऋजुदास, धन्य, सुनक्षत्र, कार्तिकेय, नंद, नंदन, सालिभद्र, अभय, वारिषेण, चिलातीपुत्र ये दश भये । जैसे ही दश दश अन्य तीर्थकर के समय भी भये हैं । तिनि सबनि का कथन इस अंग विष है।
बहुरि प्रश्न कहिये धूम्हारा पुर५, ओ यूक यानियत माहिये, जिसविर्षे वर्णन करिये, सो प्रश्न व्याकरण नामा दशयां अंग जानना । इसविष जो कोई बूझनेवाला गई वस्तु कौं, वा मूठी की वस्तु कौं, या चिता वा धनधान्य लाभ, अलाभ सुख, दुःख, जीवना, मरणा, जीति, हारि इत्यादिक प्रश्न बूझै; अतीत, अनागत, वर्तमानकाल संबंधी, ताकौं यथार्थ कहने का उपायरूप व्याख्यान इस अंग विर्षे है। अथदा शिष्य कौं प्रश्न के अनुसार प्राक्षेपिणी, विक्षेपिणी, संवेजिनी, निर्वेजिनी ये च्यारि कथा भी प्रश्नव्याकरण अंग विर्षे प्रकट कीजिये है।
तहां तीर्थकरादिक का चरित्ररूप प्रथमानुयोग, लोक का वर्णन रूप करणानुयोग, श्रावक मुनिधर्म का कथनरूप चरणानुयोग, पंचास्तिकायादिक का कथनरूप द्रव्यानुयोग, इनिका कथन अर परमत की शंका दूरि करिए, सो आक्षेपिणी कथा ।
बहुरि प्रमाण - नय रूप युक्ति, तीहिं करि न्याय के बल तें सर्वथा एकांतवादी आदि परमतनि करि कह्या अर्थ, ताका खंडन करना, सो विक्षेपिणी कथा ।
बहरि रत्नत्रयरूपधर्म अर तीर्थकरादि पद की ईश्वरता वा ज्ञान, सुन्न, वीर्यादिकरूप धर्म का फल, ताके अनुराग को कारण सो संवेजिनी कथा ।
बहरि संसार, देह, भोग के राग ते जीव नारकादि विषै दरिद्र, अपमान, पीडा, दुःख भोगवं है । इत्यादिक विराग होने कौं कारणरूप जो. कथा, सो निर्वेजिनी कथा कहिये । सो प्रैसी भी कथा प्रश्नव्याकरण अंग विर्षे पाइए है ।
बहुरि विपाक जो कर्म का उदय, ताकौं सूत्रयति कहिये कहै, सो विपाक सूत्रनामा ग्यारमा अंग जानना । इसविर्षे कर्मनि का फल देने रूप जो परिणमन, सोई उदय कहिये । ताका तीन, मंद, मध्यम, अनुभाग करि द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव अपेक्षा वर्णन पाइए. है ।