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[ गोम्मटसरर जीवकाण्ड गाथा ३५४ बहुरि ग वर्ण सहित विर्षे प्रत्येक द्वि, त्रि, चतुः, पंच, षट्, सप्त, अष्ट संयोगी भंग क्रम ते एक, सात, इकईस, पैतीस, पैंतीस, इकईस, सात, एक असे एक से अट्ठाईस भंग हैं।
बहरि झ वर्ण सहित विषं प्रत्येक, द्वि, त्रि, चतुः, पंच, षट्, सप्त, अष्ट, नव, संयोगी भंग कम ते एक, आठ, अट्ठाईस, छप्पन, सत्तरि, छप्पन, अठाईस, पाठ, एक असे दोय से छप्पन भंग हैं।
__बहुरि ज वर्ण सहित विर्षे प्रत्येक द्वि, त्रि, चतुः, पंच, षट्, सप्त, अष्ट, नव, दश संयोगी भंग क्रम से एक, नव, छत्तीस, चौरासी, एक सै छवीस, एक से छन्वीस, चौरासी, छत्तीस, नव; एक असे पांच से बारह भंग हैं ।
___ इस ही अनुक्रमकरि चौसठि स्थाननि विर्षे प्रत्येक आदि भंग पूर्व पूर्व स्थान ते उत्तर उत्तर स्थान दिर्षे दुणे दूर्ण हो हैं ।
...चौसठ ६४ पयंत
प्रस्धेक
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द्विसंयोगों
| ६ | १० | १५ | २१ | २८ | ३६
निसंयोपी
ओड
चतुःसंयोपी
जोन
पंचसंयोगी
जोटा
१६.
पसंयोगी
सप्तसंयोगही
प्रष्टसंयोगी
अवसंयोगी
दशसंपरेपी
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