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मोम्मटसार जीवकाण्ड गांथा ३२४.३२५
इहा कोऊ कहै कि सर्व जघन्य ज्ञान की अनंत का भाग कैसे संभबैं ?
ताका समाधान-जो द्विरुपवर्गधारा विर्षे अनंतानंत वर्गस्थान भए पीछे, क्रम से जीवराशि, पुद्गल राशि, काल समयराशि, श्रेणी आकाशराशि हो है । तिनिके ऊपरि अनंतानंत वर्गस्थान भएं सूक्ष्म निगोद लब्धि अपर्याप्तक संबंधी जघन्य ज्ञान के अविभाग प्रतिच्छेदनि का प्रमाण हो है । जाका भाग न होइ असे ज्ञान शक्ति के अंश, तिनिका असा परिमाण है । तातै तिनिकी अपेक्षा अनंत का भागहार संभव है।
जीवाणं च य रासी, असंखलोगा वरं ख संखेज्ज । भागगुणम्हि य कमसो, अवठ्ठिदा होति छहारणे ॥३२४॥
जीवानां च च राशिः असंस्थलोका बरं खलु संख्यातम् ।
भागगुरुयोन क्रमशः अवस्थिता भवंति षट्स्थाने ॥३२४।। टीका - इहां अनंतभाग आदिक छह स्थानकनि विर्षे ए छह संदृष्टि प्रयस्थित कहिए; नियमरूप जाननी । अनंत विर्षे तो जीवराशि के सर्व जीवनि का परिमाण सो जानना । असंख्यात विषं असंख्यात लोक जो असंख्यात गुणा लोकाकाश के प्रदेशनि का परिणाम सो जानना । संख्यात विर्षे उत्कृष्ट संख्यात जो उत्कृष्ट संख्यात का परिणाम सो जानना । सोई तीनों प्रमाण भाग वृद्धि विर्षे जानना । ये ही गुरणवृद्धि वि जानना । भागवृद्धि विर्षे इनि प्रमानि का भाग पूर्वस्थान को दीएं, जो परिणाम प्राव, तितने पूर्वस्थान विर्षे मिलाएं, उत्तरस्थान होइ । गुणवृद्धि विर्षे इनि प्रमारानि करि पूर्वस्थान की गुणे, उत्तरस्थान हो हैं ।
उबंक चउरक, पणछस्सतंक अट्ठअंकं च । छब्बड्ढोणं सण्णा, कमसो संविकिरणळें ॥३२॥
उर्वकश्चतुरंकः पंचषट्सप्तांकः प्रष्टोकश्च ।
घड्बद्धीनां संज्ञा, क्रमशः संदृष्टिकरणार्थम् ॥३२५॥ - टीका - बहुरि लघुसंदृष्टि करने के निमित्त अनंत भाग वृद्धि प्रादि छह वृद्धिनि की अन्यसंज्ञा संदृष्टि सो कहै हैं - तहां अनंत भागवृद्धि की उर्वक कहिए उकार उ, असंख्यात भागवृद्धि की च्यारि का अंक (४), संख्यात भागवृद्धि की पांचका अंक (५), संख्यात गुगवृद्धि की छह का अंक (६), असंख्यात गुणवृद्धि की
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