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सम्बाहामस्तिका भाषाटीका ]
ज्ञान भया, सो यह स्मृति प्रमाण हैं। अथवा चन्द्रमा समान स्त्री का मुख है। सो स्त्री का मुख देखते चन्द्रमा का ज्ञान भया । साते याको प्रत्यभिज्ञान प्रमाण भी कहिये । जैसे ही वन वि गवया नामा तिर्यचकी देख्या तहां असा यादि आया कि गऊ के सदृश गक्य हो है; तातै यह स्मृति प्रमाण है। अथवा गऊ समान गवय हो है। सो गऊ का ज्ञान विय को देखते ही भया; तातैयाको प्रत्यभिज्ञान भी कहिए । वा कहिए जैसे श दाहरण कहे तमें और भी जानने। जैसे रसोई विर्षे अग्नि होते संतै धूवा हो है, अर द्रह विर्षे अग्नि नाहीं, तातै धूवा भी नाहीं । तातै सर्व देश कालविर्षे अग्नि पर धूवां के अन्यथा अनुपपतिः भाच है। अन्यथा कहिए अग्नि न होइ तो अनुपपत्ति कहिए धूवा भी ना होइ, सोः प्रैसा अन्यथा अनुपपसि का ज्ञान, सो तक नामी प्रमाण भी मतिज्ञाना है ।
या प्रकार अनुमान स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क ए च्यारों परोक्ष प्रमाण अनिसृत है विषय जाका, असा मतिज्ञानः के भेद जानने ।
पांचवां पागम नामा परोक्ष प्रमाण श्रुतज्ञान का भेद जानना । एकोदेशपने भी विशदता, स्पष्टता इनिके जानने विर्षे नाहीं । तात इनिकों परोक्ष प्रमाण कहे; और इनके बिना जो पाँच इन्द्रियनि कॅरि बहु, बहुविध आदि जानिए हैं, तें सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष जानने; जाते इनिक जानने में एकोदेश विशदता, निर्मलता, स्पष्टता, पाइए है । व्यवहार विर्षे भी जैसे कहिए: है. जो मैं नेत्रनि स्यौं प्रत्यक्ष देख्या ।
बहुरि इस मतिज्ञान विषं पारमार्थिक प्रत्यक्षपना है नाहीं; जाते अपने विषय कौं तारतम्य रूप संपूर्ण स्पष्ट न जानें । पूर्व प्राचार्यनि करि प्रत्यक्ष का लक्षरए विशद वा स्पष्ट ही कहा हैं । जैसे ए सर्व मंतिज्ञान के भेद जानने; ते भेद प्रमाण हैं; जाते ए सर्व सम्यग्ज्ञान हैं। बहुरि "सम्यग्ज्ञान प्रमाण" अँसी सिद्धांत विर्ष कहा है।
एक्कचउक्कं चउबीसठ्ठावीसं च तिप्पडि किच्चा । इगिछदवारसगुरिणदे, मदिणाणे होति ठाणारिणः ॥३१४॥
एकचतुष्कं चतुर्विशत्यष्टाविंशतिच' त्रिप्रति कृत्वा ।
एकषद्वादशगुरिणते, मंसिझाने भवति स्थानानि ।।३१४॥ टीका - मतिज्ञान सामान्य अपेक्षा करि तौ एक है, पर अंवग्रह, ईहा, अवाय धारणा की अपेक्षा च्यारि है । बहुरि पांच इंद्रियाद छठा मन करिअर अवग्रह, ईहा,