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[ोम्मापार ओवकाण्ड पाय ३१२-३१३ भावार्थ -- जाकौं जानिए यह शीघ्र प्रवत है; सो क्षिप्र कहिए । बहुरि जाकौं जानिए यह गूढ है, सो अनिसृत कहिए । बहुरि जाकौं बिना कहैं जानिए; सो अनुक्त कहिए । बहुरि जाकौं जानिए यहु ध्र व है; सो ध्रुव कहिए इत्यादिक मतिज्ञान के विषय हैं । इनिकौं मतिज्ञान करि जानिए है।
वत्थुस्स परेसादो, वत्थुग्गहणं तु वत्थुदेसं वा। सयलं वा अवलंबिय, अणिस्सिद अण्णवत्थुगई ॥३१२॥ वस्तुनः प्रदेशात, वस्तुग्रहणं तु वस्तुहेशं वा ।
सकलं वा अवलंब्य, अनिसृतमन्यधस्तुगंतिः ॥३१२॥
टीका - किसी वस्तु का प्रदेश कहिए, एकोदेश अंश प्रगट हैं । ताते जो वह एकोदेश अंश जिस वस्तु बिना न होइ, असें अप्रगट वस्तु का ग्रहण कीजिए; सौ अनिस्तज्ञान है। अथवा एक किसी वस्तु का एकोदेश अंशं कौं वा सर्वांग वस्तुं हौं कौं अवलंबि करि, ग्रहण करि अन्य कोई अप्रकट बस्तु का ग्रहण करना; सो भी अनिसृत ज्ञान है । इनिक उदाहरण प्राग कह हैं -
पुक्खरंगहणे काले, हथिस्स य वदरणगवयगहणे वा। वत्थु तरचंदस्स य, धेणुस्स य बोहरणं च हवे ॥३१३॥
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पुष्करग्रहणे काले, हस्तिनश्च ववनगवयग्रहणे वा।
दस्त्वंतरचंद्रस्य च, धेनोश्च बोधनं च भवेत् ॥३१३॥ टोका - पुष्कर कहिए जल तै बाहिर प्रमट दीसती असी जल विष न्या हूचा हस्ती की संडि, ताको जानने तैं जैसी प्रतीति हो है कि इस जल विर्षे हस्ती मगन है; जाते हस्ती बिना सुंडि न हो है । जिस बिना जो न होइ, ताको लिसका साधन कहिए; जैसें अग्नि बिना धूम नाहीं, ताः अग्नि साध्य हैं, धूम साधन है । सो साधन ते साध्य का जानना; सो अनुमान प्रमाण है। इहां सूडि साधन, हस्ती साध्य है । सूडि ले हस्ती का ज्ञान भयो, तात इहां अनुमान प्रमाण प्राया। बहुरि किसी स्त्री का मुख देखा,, सो मुख: का ग्रहण समय विर्षे चन्द्रमा का स्मरण भया; प्रागे चन्द्रमा देख्या था, स्त्री के मुख की पर चन्द्रमा की सदशता है, सो स्त्री का मुख: देखिसे ही चन्द्रमा यादि आया, सो चन्द्रमा, तिस काल विर्षे प्रकट न था, ताकी
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