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बारहवां अधिकार : ज्ञानमार्गणाधिकार
मंगलाचरण
WITH: Mithin T
वंदौ वासव पूज्यपद, वास पूज्य जिन सोय ।
गर्भादिक में पूज्य जो, रस्त द्रव्य तें होय ।। यामै श्री नेमिचंद्र सिद्धांतचक्रवर्ती ज्ञान मार्गणा का प्रारंभ करें हैं । तहां प्रथम ही निरुक्ति लीएं, ज्ञान का सामान्य लक्षण कहैं हैं -
जारपइ तिकालविसए, दव्वगुरणे पज्जए य बहुभेदे। पच्चक्खं च परोक्खं, अरगेण गाणे त्ति रणं बेति ॥२६॥
जानासि त्रिकालविषयान्, द्रव्यगुणान् पर्यायांश बहुभेदान् ।
प्रत्यक्षं च परोक्षमनेन मानमिति इदं वति ।।२९९॥ टीका - त्रिकाल संबंधी हुए, हो है, होहिगे असे जीवादि द्रव्य वा ज्ञानादि गुण वा स्थावरादि पर्याय नाना प्रकार हैं । तहां जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल ए द्रव्य हैं । बहुरि ज्ञान, दर्शन, सम्यक्त्व, सुख, वीर्य आदि वा स्पर्श, रस, गंध, वर्ण आदि वा गतिहेतुत्व, स्थितिहेतुत्वें, अवगाहनहेतुत्व, वर्तनाहेतुत्व आदि गुरण हैं। बहुरि स्थावर, त्रस आदि वा अणु, स्कंधपना आदि वा अन्य अर्थ, व्यंजन आदि भेद लीएं अनेक पर्याय हैं । तिनको प्रत्यक्ष वा परोक्ष जीय नामा पदार्थ, इस करि जाने है, तातैं याकौं ज्ञान कहिए । 'शायते अनेनेसि ज्ञान' असी ज्ञान शब्द की निरुक्ति जाननी । इहां जाननरूप क्रिया का प्रात्मा कर्ता, तहां करणस्वरूप ज्ञान, अपने विषयभूत अर्थनि का जाननहारा जीव का गुण है -- असे अरहतादिक कहैं हैं । असाधारण कारण का नाम करण है । बहुरि यह सम्यग्ज्ञान है; सोई प्रत्यक्ष या परोक्षरूप प्रमाण है। जो ज्ञान अपने विषय को स्पष्ट विशद जानें, ताकौं प्रत्यक्ष कहिए । जो अपने विषय को अस्पष्ट - अविशद जानें, ताकौं परोक्ष कहिए । सो इस प्रमाण का स्वरूप या संख्या वा विषय या फल वा लक्षण बहुरि ताके अन्यथा बाद
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१पखंडानम बवला पुस्तक १, गाथा सं. ६१, पृष्ठ १४५ ! पाठभेद--सिकारुविश्वए-तिकाक्तसहित-एगाणे गाएं।