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[ गोम्मटसार जीवका गाथा २६३.
बहरि इहां तें षट्स्थान पतित विशुद्धि वृद्धि लीएं प्रसंख्यात लोक प्रमाण स्थानकनि विषे मध्यम शुक्ललेश्या हो पाइए है; जातें इहां तिस ही लेश्या के लक्षण पाइए है। सें धूली रेखा समान क्रोध का जघन्य शक्तिस्थान के जे उदयरूप स्थानक, तिमि विषे लेश्या कही । इहां प्रतस्थान विषे अजघन्य शक्ति की व्युच्छित्तिः भई । बहुरि इहां तैं श्रागें जल रेखा समान क्रोध का जघन्य शक्तिस्थान, ताके षट् स्थान पतित विशुद्धि वृद्धि लाएं असंख्यात लोक प्रमाण स्थानकनि विषे मध्यम शुक्ललेश्या पाइए है । बहुरि याही के अंतस्थान विषै उत्कृष्ट शुक्ल लेश्या पाइए हैं, जैसे च्यारि प्रकार शक्तियुक्त क्रोध विषै लेश्या अपेक्षा चौदह स्थानक कहे । उत्कृष्ट शक्ति.. स्थान विषे एक, अनुत्कृष्ट शक्तिस्थानकनि विषै छह, भजघन्य शक्तिस्थानक विषै छहः. जघन्य शक्तिस्थानक विषै एक असे चौदह कहे ।
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sri किसी के भ्रम होइगा कि ए च्यारि शक्तिस्थानक कहे, इन ही का ringबंधी आदि नाम है ?
सो नाही, जो से कहिए तो षष्ठगुणस्थान विषे संज्वलन ही हैं; तहां एक शुक्ललेश्या हो संभवै जातै इहां जघन्य शक्तिस्थान दिषे एक शुक्ल लेश्या ही कही है; सो षष्ठ गुणस्थान विषै तो लेश्या तीन हैं । तातें अनंतानुबंधी इत्यादि भेदः सम्य
दिवाने की अपेक्षा हैं; ते अन्य जानने । बहुरि ये शक्तिस्थान के भेद तीव्र मंद अपेक्षा हैं; से अन्य जानने । सो जैसे ए क्रोध के चौदह स्थान लेश्या अपेक्षा कहे.. तैसे ही उत्कृष्टादिक शक्तिस्थानकति विषै मान के वा माया के वा लोभ के भी जानने
heatre सुण्णं, पिरयं च य भूगएगबिट्ठाणे । निरयं इगिबितिआऊ, तिट्ठाणे चारि सेसपदे ॥२४३॥
शैलगकृष्णे शून्यं निरयं स च कद्विस्थाने | निरयमेकद्वित्र्यालिस्थाने चत्वारि शेषपवे ॥२९३॥
टीका शिला भेद समान उत्कृष्ट क्रोध का शक्तिस्थान विषे श्रसंख्यातलोक प्रमाण उदयस्थान कहे; तिति विषै केई स्थान असे हैं जिनिविषे कोक श्रायु बं नाहीं । सो यंत्र विषै तहां शून्य लिखना । जाते जहां अति तीव्र कषाय होइ,,
हां था का बंध होइ नाहीं । बहुरि तहां ही ऊपरि के कई स्थान धोरे कषाय