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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड माथा २७७
तृकाशेषेष्टपाकाग्निसदृश परिणामवेद नोन्मुक्ताः । eeradar जीवाः, स्वकसंभवानंतवरसौख्याः ।। २७६ ।।
टोका - पुरुष वेदी का परिणाम, तिखाकी अग्नि समान है। स्त्री वेदी का परिणाम कारीष का अग्नि समान है । नपुंसक वेद का परिणाम पंजाबाकी अग्नि समान है । असें तीनों ही जाति के परिणामनि की जो पीडा, तीहि करि जे रहित भए हैं; से भाववेद अपेक्षा अनिवृत्तिकरण का अपगत वेदभाग ते लगाय, अयोगी पर्यंत अर द्रव्य भाव वेद अपेक्षा गुणस्थानातीत सिद्ध भगवान जानने ।
कोक जायेगा जहा कान सेवन नाहीं; तहां सुख भी नाहीं ?
ताक कहैं हैं-कैसे हैं ते प्रवेदी ? अपने ज्ञान दर्शन लक्षण विराजमान आत्मतत्त्व ते उत्पन भया जो अनाकुल प्रतींद्रिय अनंत सर्वोत्कृष्ट सुख, ताके भोक्ता हैं । यद्यपि नवमा गुणस्थान के प्रवेद भाग ही तें वेद उदय तें उत्पन्न कामवेददारूप संक्लेश का अभाव है । तथापि मुख्यपने सिद्धनि ही मैं आत्मीक सुख का सद्भाव दिखाइ वर्णन कीया । परमार्थं तें वेदनि का प्रभाव भए पीछे ज्ञानोपयोग की स्वस्थतारूप ग्रात्म जनित आनन्द यथायोग्य सबनि के पाइये है ।
श्री माधवचन्द्र विद्यदेव वेद मार्गणा विषै जीवनि की संख्या पांच गाथानि करि कहैं हैं -
जोइसियवाणजोरिणितिरिक्खपुरुसा य सण्णिणो जीवा । उपसलेस्सा, संखगुणा कमेणेदे ॥ २७७ ॥
ज्योतिष्कवानयोनितिर्यक्पुरुषाव संज्ञिनो जीवाः । तसेनः पथलेश्याः, संख्यगुणोनाः क्रमेरते ॥ २७७॥
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टीका पैंसठ हजार पांच से छत्तीस प्रतरांगुल का भाग जगत्प्रतर को दीएं, जो परिमाण आवे, तितने ज्योतिषी हैं। ता संख्यात गुणे घाटि व्यंतर हैं । संख्यात गुणे घाटि कहो वा संख्यातवां भाग कहो दोऊ एकार्थ हैं । बहुरि तातें संख्यात गुणे घाटि योनिमती तिथंच है। तिर्यंच गति विषै द्रव्य स्त्री इतनी हैं । बहुरि ताते संख्यात गुणे घाटि द्रव्य पुरुष वेदी तिर्यच हैं । बहुरि तातें संख्यात गुणे घाटि सनी पंचेंद्री तिर्यंच हैं। बहुरि ता संख्यात गुणा घाटि पीत लेश्या का धारक सैनी पंचद्री तियंच हैं ।