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सम्याशानन्द्रका भाषाटोका !
प्राग बिनसोपचय का स्वरूप कहैं हैं - जीवादो गंतगुणा, पडिपरमाणुम्हि विस्ससोवचया । जीवण य समवेदा, एक्केक्कं पडिसमाणा हु॥२४॥
जीवतोऽनंतगुरणाः प्रतिपरमारणौ घिस्रसोपचयाः ।
जीवेन च समवेता एकैकं प्रति समानाः हि ॥२४९।। टोका -- कर्म वा नोकर्म के जितने परमाणु हैं, तिनि एक-एक परमाणूनि प्रति जीवराशि तें अनंतानंत गुणा विनसोपचयरूप परमाणू जीव के प्रदेशनि स्यों एक क्षेत्रावगाही हैं । विससा कहिए अपने ही स्वभाव करि आत्मा के परिणाम विना ही उपछीयंसे कहिए कर्म-नोकर्म रूप विना परिगए असे कर्म-नोकर्म रूप स्कंध, तीहिं विर्षे स्निग्ध-रूक्ष गुरग का विशेष करि मिलि, एक स्कंधरूप होहि; ते विस्त्रसोपचय कहिए; असा निरुक्ति करि ही याका लक्षण आया; ताते जुदा लक्षण न कह्या । विस्त्रसोपचयरूप परमाणु कर्म-नोकर्मरूप होने को योग्य हैं। उन ही कर्म नोकर्म के स्कंध विर्षे एकक्षेत्रावगाही होइ संबंध रूप परिणमि करि एक स्कंधरूप हो हैं । वर्तमान कर्म नोकर्मरूप परिणए हैं नाहीं; असे विस्रसोपचयरूप परमाणू जानने । ते कितने हैं ? सो कहिए हैं
___ जो एक कर्म वा नोकर्म संबंधो परमाणू के जीवराशि तें अनंत गुरणे विस्रसोपच्यरूप परमाणु होइ, तौ किछु घाटि ड्योढ गुण हानि का प्रमाण करि गणित समयप्रबद्ध प्रमाण सर्वसत्त्वरूप कर्म वा नोकर्म के परमाणूनि के केते विनसोपचय परमाणू होंहि; जैसे त्रैराशिक करना । इहां प्रमाण राशि एक, फलराशि अनंतगुणा जीवराशि, इच्छाराशि किंचिदून द्वयर्धगुणहानि गुरिंगत समयप्रबद्ध । तहां इच्छा कौं फलराशि करि गुणि, प्रमाण का भाग दीएं, लब्धराशिमात्र आत्मा के प्रदेशनि विर्षे तिष्ठते सर्व विस्रसोपचय परमाणूनि का प्रमाण जानना । बहुरि इस वित्रसोपचय परमाणूनि का परिमाण विर्षे किंचिढून द्वयर्धगुणहानि गुरिणत समयप्रबद्ध मात्र कर्म
नोकर्मरूप परमाणू नि का परिमाण कौं मिलाएं, विस्त्रसोपचय सहित कर्म नोकर्म का - सत्त्व हो है।
प्रारी कर्म-नोकर्मनि का उत्कृष्ट संचय का स्वरूप वा स्थान वा लक्षण प्ररूप हैं