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सम्माज्ञानचन्त्रिका भाषाका
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पृथ्वीदकाग्निमारुतसाधारणस्थूलसूक्ष्मप्रत्येकाः ।
एतेषु अपूर्णेषु च एककस्मिन् द्वादश खं षट्कम् ॥ १२५ ।।
टीका - पृथ्वी, आप, तेज, वायु, साधारण वनस्पति इनि - पांचों के सूक्ष्मबादर करि दश भेद भये पर एक प्रत्येक वनस्पती - इनि म्यारह लब्धि अपर्याप्तकनि विर्षे एक-एक भेद विर्षे बारह, बिदी, छह इनि अंकनिकरि छह हजार बारह (६०.१.२.) निरंतर क्षुद्रभव जानने । पूर्व निरंतर क्षुद्रभव एकद्रिय के छयासठ हजार एक सौ बत्तीस कहे । तिनिकौं ग्यारह का भाग दीए एक-एक के छह हजार बारह क्षुद्र भवनि का प्रमाण प्राव है। असे लब्धि अपर्याप्त के निरंतर क्षुद्रभव कहे, तहाँ तिनको संख्या वा काल का निर्णय करने की च्यारि प्रकार अपवर्तन राशिक करि दिखाव हैं । सो त्रैराशिक का स्वरूप ग्रंथ का पीठबंध विर्षे कहा था, सो जानना । सो यहां दिखाइये है - जो एक क्षुद्रभव का काल सांस का अठारहवां भाग होइ, तो छयासठि हजार तीन सौ छत्तीस निरंतर क्षुद्रभवनि का कितना काल होइ ? तहां प्रमाण राशि १, फलराशि पका का अठारह भाग : पर दहा रणि घासाठ हजार तीन सै छत्तीस (६६३३६), तहां फल कौं इच्छा करि गुरणे प्रमाण का भाग दिए लब्ध राशि विर्षे छत्तीस सै पिच्यासी अर एक का त्रिभाग ३६८५१. इतना उस्वास भए; असें सब क्षुद्रभवनि का काल का परिमारण भया। यहां इतने प्रमाण अंतर्मुहूर्त जानना । जाते असा वचन है, उक्तम् च
प्रावधानलसानुपहतमनुजोच्छवासस्त्रिसप्तसप्तत्रिप्रसितैः ।
पाहुमुहूर्तमंतर्मुहूर्तमष्टाव्यजितस्त्रिभागयुतः ।। याका अर्थ -- सुखी, धनवान, पालस रहित, निरोगी मनुष्य का सैंतीस से तेहत्तरि (३७७३) उस्वासनि का एक मुहूर्त; तहां अठासी उस्वास पर एक उस्वास का तीसरा भाग (होन) घटाए सर्व क्षुद्रभवनि का काल अंतर्मुहूर्त होइ । बहुरि उक्तम् च--
प्रायुरंतर्मुहुर्तः स्यादेखोस्याष्टादशांशकः ।
उच्छवासस्य जघन्यं च नृतिरश्चां लब्ध्यपूर्णके ।। याका अर्थ - लब्धि अपर्याप्तक मनुष्य लियंचनि का आयु :एक उस्वासका अठारहवां भाम प्रमाण अंतर्मुहूर्त मात्र है । सो असे कह्या सांस का अठारहवां भाग