________________
२३१ ]
| गोम्मटसार जीवकांड गाया ११२
पर्यन्त दोय स्थान है, तिनिकी व्यारि बिंदी लिखनी । बहुरि इस ही प्रकार भाग इस एक ही पंक्ति विषे सूक्ष्म पर्याप्त वायु, तेज, प्, पृथ्वी, बहुरि बादर पर्याप्त वायु तेज, पृथ्वी, अ, निगोद, प्रतिष्ठित प्रत्येक इनिका अपना-अपना जघन्य अवगाहना स्थान की आदि देकार अपना-अपना उत्कृष्ट श्रवगाहना स्थान पर्यन्त दोय- दोय स्थानति की व्यारि च्यारि बिंदी लिखनी । बहुरि जैसे ही प्रतिष्ठित प्रत्येक का उत्कृष्ट अवगाहन स्थान ते आगे तिस ही पंक्ति विषै प्रतिष्ठित प्रत्येक पर्याप्त का जघन्य अवगाहना स्थान तें लगाइ उत्कृष्ट अवगाहना स्थान पर्यन्त तेरह स्थान हैं । afrat छब्बीस बिंदी लिखनी । असें इस एक ही पंक्ति विषै बिंदी लिखनी कही । तहां पर्याप्त सूक्ष्म निगोद का आदि स्थान सतरहवां है, तांतें इनके दोय स्थाननि की सोलहवां स्थान की दोय विदीनि का नीचा कौं छोडि सतरहवां अठारहवां स्थान की च्यारि बिदी लिखनी । बहुरि सूक्ष्म पर्याप्त का आदि स्थान बीसवां है । तातें तिस ही पंक्ति विषै उगरणीसवां स्थान की दीये बिंदी का नीचा की छोडि बीसवां इकईसवां दोय स्थाननि की च्यारि बिंदी लिखनीं । असें ही बीचि-बीच एक स्थान की दोयदोय बिंदी का नीचा कौं छोडि छोडि सूक्ष्म पर्याप्त तेज श्रादिक के दोय-दीय स्थाननि की च्यारिन्ध्यारि बिदी लिखनी । बहुरि तिस ही पंक्ति विषे प्रतिष्ठित प्रत्येक के पचासवां तें लगाइ स्थान हैं, तातें पचासवां स्थानक की विदीनि तै लगाइ तेरह स्थाननि की छब्बीस बिंदी लिखती; असे एक-एक पंक्ति विषै कहे । बहुरि तिस पंक्ति के नीचे-नीचे अठारमी, उगणीसमी, बीसमी, इकवीसमी पंक्ति विषै पर्याप्त द्वींद्रिय, त्रींद्रिय, चतुरिद्रिय, पंचेंद्रिय जीवनि का अपना-अपना जघन्य श्रवगाहन स्थान तैं लगाइ उत्कृष्ट स्थान पर्यन्तं ग्यारह, आठ आठ दश स्थान हैं । तिनिकी क्रम तें बाईस, सोलह सोलह, बीस बिंदी लिखनि । तहां पर्याप्त बेंद्रिय के इक्यावन हैं लगाइ स्थान हैं, तातें सतरहवीं पंक्ति विषे अप्रतिष्ठित प्रत्येक की छब्बीस fit . लिखी थी, तिनिके नीचे आदि की पचासवां स्थान की दोय बिंदी का नीचा क - छोडि आगे बाईस बिंदी लिखनी । बहुरि जैसे ही नीचे-नीचे प्रादि की दोय-दोय fat का नीचा की छोडि बावनवां, तरेपनवां, चौवनवां स्थानक की बिंदी तें लगाइ क्रम सोलह सोलह, बीस बिंदी लिखनी । या प्रकार मत्स्यरचना विषे सूक्ष्म निगोद लब्धि अपर्याप्त का जघन्य श्रवगाहना स्थान को प्रादि देकरि संज्ञी पंचेंद्री पर्याप्त का उत्कृष्ट अवगाहन स्थान पर्यन्त सर्व अवगाहन स्थाननि की प्रत्येक दोयदो शून्य की विवक्षा करि तिन स्थानकनि की गणती के प्राश्रय सा होनाधिक
:::::