________________
[ गोटसार श्रीयाण्ड गाथा ३६
THURMER
बहुरि गुणश्रेणी पायाम का काल तातै विपरीत उल्टा अनुक्रम धरै है, सोई कहिए है - 'समुद्धात जिनौ आदि देकरि विशुद्ध मिथ्यादृष्टि पर्यंत गुणश्रेणी आयाम का काल क्रम करि संख्यातगुरणा-संख्यातगुणा है' । समुद्धात जिनका गुणश्रेणी आयामकाल अन्तर्मुहूर्तमात्र है । तातै स्वस्थान जिनका गुणश्रेणी पायामकाल संख्यात गुणा है । तातै क्षीणमोह का संख्यातगुणा है । जैसे ही क्रम ते पीछे ते क्षपकश्रेणी वाले आदि विर्षे संख्यात-संख्यात गुणा जानना ।
___ तहां अंत विर्षे बहुत बार संख्यातगुणा भया, तो भी करण परिणाम संयुक्त विशुद्ध मिध्यादृष्टि के गुणश्रेणी पायाम का काल अंतर्मुहूर्तमात्र ही है, अधिक नाहीं । काहे ते?
जातें अंतर्मुहूर्त के भेद बहुत हैं । तहां जघन्य अंतर्मुहूर्त एक प्रावली प्रमाण है, सो सर्व ते स्तोक है । बहुरि यातें एक समय अधिक प्रावली ते लगाइ एक-एक समय बघता मध्यम अंतर्मुहर्त होइ । अंत का उत्कृष्ट अंतर्मुहर्त एक समय घाटि दोय घटिकारूप मुहूर्त प्रमाण है । तहां ताके उच्छ्वास तीन हजार सात सै तेहत्तरि अर एक उच्छ्वास की प्रावली संख्यात, यात दोय बार संख्यातगुणी आवली प्रमाण उत्कृष्ट मुहूर्त है । बहुरि - 'प्रादि अंते सुद्धे वट्टिहदे रूवसंजुरे ठाणे' इस सूत्र करि आवलीमात्र जघन्य अंतर्मुहूर्त कौं दोय बार संख्यातमुरिणत प्राबली प्रमाण उत्कृष्ट अंतर्मुहर्त विर्षे घटाइ, वृद्धि का प्रमाण एक समय का भाग दीए जो प्रमाण होइ, तामै एक और जोडें जो प्रमारण होइ, तितने अंतर्मुहर्त के भेद संख्यात प्रावली प्रमाण
-
--ONARA
amana
प्राग असे कर्म सहित जीवनि का गुणस्थानकनि का प्राश्रय लीए स्वरूप पर तिस-तिस का कर्म की निर्जरा का द्रव्य वा काल आयाम का प्रमाण, ताकौं निरूपण करि अब निर्जरे हैं सर्व कर्म जिनकरि असे जे सिद्ध परमेष्ठी, तिनका स्वरूप कौं अन्यमत के विवाद का निराकरण लीए गाथा दोय करि कहैं हैं - .
अट्ठवियकम्मवियला, सीदीभूवा रिणरंजणा रिपच्चा। अगरणा किदकिच्चा, लोयग्गणिवासिगो सिद्धा॥६॥
अष्टविधकर्म विकलाः, शीतोभूता निरंजना नित्याः।।
प्रष्टगुस्साः कृतकृत्याः, लोकाग्रनिवासिनः सिद्धाः ॥६८॥ १. पखंडागम - धवला पुस्तक १, पृष्ठ २०१, सूत्र २३, गाथा १२७