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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका पीठिका
सब विसवा मिलाइ, इनिका भाम देई अपना-अपना विसवानि करि मुण, जैसे अपना-अपना
व्य का प्रमणि आवै, तैसे इहां समय-समय विर्षे जेता-जेता द्रव्य निर्जर, ताका प्रमाण वर्णन किया है। ऐसे इहां सम्यक्त्व की उत्पत्तिरूप करण का गुणश्रेणी आयाम विर्षे वर्णन उदाहरण मात्र किया; ऐसे ही अन्यत्र भी जानना । तहां काल. का वा द्रव्य का विशेष है, सो यथासंभव जानता ।
रहरि यात प्रागै जो उपरितन स्थिति विर्षे दीया द्रव्य, सो विवक्षित मतिज्ञानावरण की स्थिति के निषेक पूर्व थे, तिन विष इस गुणश्रेणी पायाम के काल के पीछे अनन्तर समय संबंधी जो निषेक, तातै लगाइ अंत विर्षे प्रतिस्थापनावली के निकनि की छोडि जे पूर्व निषेक थे, तिनि विर्षे क्रम ते दीजिए है। पूर्व तिनि निषेकनि की द्रव्य विखें याकी भी क्रम करि मिलाइए है। तहां नानागुणहानि विर्षे पहला-पहला निषेकनि विर्षे प्राधा-आधा दीजिये, द्वितीयादि निषेकनि विर्षे चय हीन का अनुक्रम करि दीजिए, सो इस. वर्णन विर्षे त्रिकोण, रचना संभव है। ताका विशेष आग करेंगे । इहां प्रयोजन का अभाव है, तातै विशेष न कीया है । असे जो एक भाग मात्र जुदा द्रव्य ग्रह्या था, ताकी वर्तमान समय तें लगाई उदयावली का काल, ताके पीछे गुणश्रेणी अायाम का काल, ताके पीछे अवशेष सर्वस्थिति का. काल, अंत विर्षे प्रतिस्थापनावली बिना सो उपरितनस्थिति का काल, तिनके निषेक पूर्व थे, तिनिविषै मिलाइए है; सो यह मिलाया हुवा द्रव्य पूर्व निषेकनि की साथिः उदय होइ निर्जरै है; असा भाव जानना ।
बहुरि पूर्वे कह्या जो-जो गुणश्रेणी निर्जरा द्रव्य, सो-सो श्रावकादि दश स्थान कनि विर्षे असंख्यात-असंख्यात गुणा है, सो कैसे ?
ताका समाधान - तिस गुरगश्रेणी द्रव्य कौं कारणभूत जो अपकर्षण भागहार, तिनके अधिक-अधिक विशुद्धता का निमित्त करि असंख्यातगुणा घाटिपना है, तातें तिस गुरणश्रेणी द्रव्य के असंख्यातगुणा अनुक्रम की प्रसिद्धता है ।
भावार्थ - श्रावकादि दश स्थानकनि विर्षे विशुद्धता अधिक-अधिक है, सातै जो पूर्वस्थान विर्षे अपकर्षण भागहार का प्रमाण था, ताके असंख्यातवें भाग उत्तर स्थान विषं अपकर्षण भागहार का प्रमाण जानना । सो जेता भागहार घटता होइ, तेता लब्धराशि को प्रमाण अधिक होइ । तातै इहां लब्धराशि जो मुरगश्रेणी का द्रव्य, सो भी क्रम ते असंख्यातगुणा हो है।
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