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प्रस्तावना
इनको प्रमाण-कोटि में प्रस्तुत नहीं किया जाता। आचार्य सिद्धसेन के परवर्ती आचार्य
आचार्य सिद्धसेन को आचार्य गुणधर, भूतबलि, कुन्दकुन्द, उमास्वामी और आ. समन्तभद्र से जो विचार-परम्परा उपलब्ध हुई थी, वही परवर्ती आचार्य की कति में अनुवर्तित रही। उनमें सर्व प्रथम आचार्य पूज्यपाद बनाम देवनन्दि (लगभग वि. सं. 807-657) का नाम लिया जाता है। जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है कि पूज्यपाद ने सिद्धसेन का उल्लेख विशेष रूप से 'जैनेन्द्रव्याकरण' के सूत्र (येत्तेः सिद्धसेनस्य, 5, 1, 7) में किया है। उन्होंने अपनी 'तत्त्वार्थवृत्ति' (सर्वार्थसिद्धि) नामक तत्त्वार्थसूत्र' की टीका (7, 18) में आ. सिद्धसेन कृत द्वात्रिंशिका के सोलहवें श्लोक का प्रथम चरण उद्धृत किया है। इसके अतिरिक्त "सन्मतिसूत्र' की एक गाथा (1, 19) भी किंचित् परिवर्तन के साथ आचार्य पूज्यपाद कृत "सर्वार्थसिद्धि' (8, 3) में उद्धृत मिलती है। अतः आचार्य पूज्यपाद की रचनाओं पर 'सन्मतिसूत्र' का प्रभाव स्पष्ट
रूप से लक्षित होता है। ___आचार्य अकलंकदेव (वि सं 777-837) ने 'तत्त्वार्थसूत्रा' के 'गुणपर्ययवद्द्रव्यम्'(5, 37) सूत्र की व्याख्या करते हुए गुण को पर्याय से भिन्न नहीं माना है। यहाँ तक कि गण ही पर्याय है, यह निर्देश कर उन्होंने परमत से स्वमत की भिन्नता सिद्ध की है। उनका यह विवेचन अन्य आचार्य के साथ ही आचार्य सिद्धसेन के विचारों का पूर्ण रूप से अनुगमन करता है। इसी प्रकार उन्होंने 'लघीयस्त्रय' की 67 वीं कारिका में 'सन्मतिसूत्र' की एक गाथा (1,3) को संस्कृत-छाया के रूप में उद्धृत किया है।
आचार्य सिद्धसेन से अत्यधिक प्रभावित एक अन्य दिगम्बर आचार्य हैं-विद्यानन्दि (वि. सं. 832-897)| उन्होंने अपने श्लोकवार्तिक' ग्रन्थ में नय तथा अनेकान्त विषय का प्रतिपादन करते हुए 'सन्मतिसूत्र' की कुछ गाथाओं को संस्कृत-छाया के रूप में उधृत किया है। यद्यपि आचार्य सिद्धसेन के विचारों से वे पूर्णतः सहमत प्रतीत नहीं होते हैं, फिर भी उन पर आ, सिद्धसेन का प्रभाव कम नहीं माना जा सकता है।
धर्मप्रभावक दिगम्बर आचार्य प्रमाचन्द्र विरचित 'प्रमेयकमलमार्तण्ट' की भाषा I. वियोजयति चासुभिर्न घ वधेन संयुध्यते। -सवार्थसिद्धि, 7, 19 2. "ततः तीर्यकरवचनसंग्रहविशेषमूलव्याकरणी द्रष्यपयोपार्यिकौ निश्चेतव्यौ।"
--सघीयस्त्रय, कारिका 17 की स्थोपा यिति 3. "यावंतो बचनपयास्तावंतः सम्भवन्ति नययादाः" इति वचनात् । -तस्थार्थश्लोकवार्तिक, पृ. 114
नाभोक्तं स्थापना इव्वं हव्यार्थिकनयारणात्।
पर्यावापिणा पायरतेन्यासः सम्पगीरितः ॥ -वही, श्लो. 69 तथा-"गुगपर्यययद्रव्यापिति तस्य सूत्रितत्वात, तटागमविरोधादिति कश्चित् । सोऽपि सूसा नभिज्ञः । पर्ययबद्रद्रव्यापति हि सूत्रकारेण वदता त्रिकालगोचरानतक्रपथाविपरिणामाश्रय द्रव्यमुस्तम् :'--बष्टी, पृ. ।।५