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________________ 150 साइतुतं एकान्त ही आक्षेप का विषय : भावार्थ-यादी अपने अभिलषित साध्य की सिद्धि हेतु जिस साधन का प्रयोग करता है, उसका अपने साध्य के साथ अविनाभाव सम्बन्ध है या नहीं-यह प्रकट करने लिए वह साधर्म्य या वैधर्म्य दृष्टान्त का प्रयोग करें या न करे; किन्तु यदि उसका पक्ष अनेकान्त सिद्धान्त की मान्यता के अनुरूप है तो किसी भी अवस्था में उसका खण्डन नहीं हो सकता । एकान्त मान्यता वाला पक्ष तो पूर्ण रूप से कभी निर्दोष सिद्ध नहीं हो सकता। इससे यह स्पष्ट है कि एकान्त मान्यता ही आक्षेप का विषय है। क्योंकि एकान्तवादी परस्पर विरोधी होने के कारण एक-दूसरे को नहीं मानते, जिससे विरोध तथा विग्रह उत्पन्न होता है। किन्तु अनेकान्त की मान्यता से परस्पर सौहार्द एवं सौमनस्य होता है तथा समन्वय की भूमिका का निर्माण होता है। दव्वं खेत्तं कालं भावं पज्जायदेससंजोगे। मेदं च पडुच्च समा भावाणं पण्णवणिज्जा ॥60॥ द्रव्यं क्षेत्रं कालं भावं पर्याय-देश-संयोगान्। भेदं च प्रतीत्य सम्यग् भावानां प्रज्ञापनीयाः ॥Gou शब्दार्थ-दच-द्रव्य, खेत-क्षेत्र, कालं -काल, भावं- भाव; पज्जायदेससंजोगेपर्याय-देश (तथा) संयोग; च-और; भेद-भेद (का) पडुध-आश्रय कर; भावाणं-पदार्थों का; पण्णवणिज्जा-प्रतिपादन करना; समा-सम्यक् (होता है)। पदार्य के प्रतिपादन का क्रम : भावार्थ-द्रव्य, क्षेत्र, काल, भान, पर्याय, देश, संयोग तथा भेद इनका आश्रय लेकर ही पदार्थों के प्रतिपादन का क्रम सम्यक होता है। पदार्थ के निकालवर्ती स्व-स्थान का नाम क्षेत्र है। परिणमन के समय की मर्यादा का नाम काल है। पदार्थ में प्रतिसमय हो रहे अन्तरंग परिणमन का नाम भाव है तथा यहिरंग परिणमम पर्याय है। बाहर में जहाँ पर पदार्थ स्थित है, उस स्थान का नाम देश है और उस समय की परिस्थिति संयोग है। उस पदार्थ का कोई-न-कोई नाम अवश्य होता है-यही भेद है। इस प्रकार इन आठ बातों को ध्यान में रख कर ही किसी वस्तु का सम्यक् प्रतिपादन किया जा सकता है। पाडेक्कणयपहगयं सुत्तं सुत्तधरसद्दसंतुट्ठा1 अविकोवियसामत्था जहागमविभत्तपडिवत्ती ॥1॥ 1. ब" वाई। 2. ब भै। 3. अ' सुमारसद्दसंतुट्ठा। ब"-सुनरषसञ्चसंतुटा ।
SR No.090409
Book TitleSammaisuttam
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size2 MB
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