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सम्महसुत्तं
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है, वे स्कन्ध कहे जाते हैं। अन्तरंग और बहिरंग दोनों तरह के निमित्तों से संघातों के विदारण को भेद कहते हैं। एक समय में होने वाले भेद और संघात इन दोनों से दो प्रदेश वाले आदि स्कन्ध उत्पन्न होते हैं। बिना भेद के अणु उत्पन्न नहीं हो सकता। एक स्कन्ध में अनन्तानन्त पुद्गल परमाणुओं का संघात होता है। अतः उसके विखण्डन से भेद रूप अनेक की उत्पत्ति होती है।
एगसमम्मि एगदवियस्स' बहुया वि होंति उप्पाया। उप्पायसमा विगमा ठिईउ उस्सग्गओ णियमा ॥41।।
एकसमये एकद्रव्यस्य बहवोऽपि भवन्त्यत्पादाः। उत्पादममा विगमाः स्थित्युत्सर्गतो निरामात !!!!!
शब्दार्थ-एगदवियस्स-एक द्रव्य की एगसमयम्मि-एक समय में बहुया-बहुत वि-भी उप्पाया-उत्पत्तियों; होति होती हैं (और); उप्पायसमा-उत्पत्ति (के) समान विगमा-विनाश; ठिई-स्थिति (भी); उस्सग्गओ--सामान्यतः ; णियमा-नियम से
और भी: भावार्थ-एक द्रव्य में एक समय में अनेक उत्पाद भी होते हैं। उसमें विनाश भी उत्पाद जितने होते हैं तथा सामान्यतः स्थितियों भी होती हैं। द्रव्य गुण और पर्याय वाला होता है। द्रव्य में क्रमभायी पर्यायें क्रमशः होती रहती हैं। इसी दृष्टि से एक समय में द्रव्य में एक उत्पाद, एक धोव्य और एक स्थिति कही गयी है। परन्तु द्रव्य में रहने वाले जो नित्य सहभावी ज्ञान, दर्शन आदि अनेक गुण हैं, उनमें प्रत्येक समय में परिणमन होता रहता है। वे निष्क्रिय नहीं हैं। अतः गुण में परिणमन की अपेक्षा से अनेक उत्पाद, व्यय तथा स्थितियों एक ही समय में होती रहती हैं। अतएव अन्य वादी का यह कथन उचित नहीं है कि एक ही समय में एक द्रव्य में अनेक उत्पाद, व्यय और धाव्य कैसे घट सकते हैं?
कायमणवयणकिरियास्वाइगई विसेसओ वावि।
संजोगभेयओ जाणणा यः दवियस्स उप्पाओ ।।42॥ I. ब* एकदावियस्स। 2. ब यिओ। १. छ किरिया' के स्थान पर 'करिआ । 4. बहोड़। 5. संजोग । द' संजोयर्भययो। 6. ब जाणतो वि।