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सम्मइसुत्तं
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शब्दार्थ-उप्पायत्या-उत्पाद (के) अर्थ (से); अकुसला-अनभिज्ञ; के वि-कुछ (लोग); दध्वंतरसंजोगाहि-द्रव्यान्तर (के) संयोगों से; दवियस्स-द्रव्य की उप्पायं-उत्पसि; बेंति-कहते हैं। विभागजायं-विभाग (से द्रव्य) उत्पन्न होता है, ऐसा: ण-नहीं इच्छोते--मानते हैं।
अन्य मतावलम्बी : मावार्थ-उत्पाद के को नहीं जाने वाले का गन्य गतागलम्बी एक द्रव्य के संयोग से अन्य द्रव्य की उत्पत्ति बताते हैं। वे द्रव्य को विभाग से उत्पन्न होने वाला नहीं मानते हैं। वैशेषिक आदि आरम्भयादियों की यह मान्यता है कि कारण से ऐसे कार्य की उत्पत्ति होती है जो पहले से कारण में नहीं था। उनके अनुसार कोई भी अवयवी द्रव्य जब नवीन रूप में बनकर तैयार होता है, तब वह अनेक अपने सहायक अवयवों के संयोग से ही बनता है, विभाग से नहीं बनता। अतः घट आदि के फूटने पर जो कपालमालादि दिखलाई पड़ती है, वह घट के विभाग से (फूटने से) उत्पन्न नहीं हुई है, किन्तु द्वयूणुक आदि के संयोग से उत्पन्न हुई है। यथार्थ में द्रव्य संयोग से नहीं, किन्तु अपनी शक्ति से निष्पन्न होता है। यह लोक छह द्रव्यों का समूह है। इसमें देख्ने जाने वाले प्रत्येक द्रव्य की उत्पत्ति सहज स्वाभाविक है। अतः लोक अकृत्रिम है। यद्यपि लोक संयोग लक्षण वाला दिखाई पड़ता है, परन्तु यह संयोग से उत्पन्न नहीं हुआ।
अणु दुअणुएहिं दब्वे आरद्धे तिअणुयं ति चवएसो'। तत्तो य पुण विभत्तो' अणु त्ति जाओ अणु होइ ॥३॥
अणु-ट्यणुकै द्रव्ये आरब्धे त्र्यणुकमिति व्यपदेशः। तस्माच्च पुनर्विभक्तोऽणुरिति जातोऽणुर्भवति ।।39||
शब्दार्थ-दुअणुएहि-दो अणुओं से (दो परमाणुओं के संयोग से); आरद्धे-आरब्ध (द्रव्य) में अणु-अणु (है); तिअणुयं-त्र्यणुक (है); ति--यह; (ऐसा) वबएसो-व्यवहार (होता है); तत्तो-इस कारण; पुण-फिर; विभत्तो-विभक्त (हुआ त्र्यणुक से); अणु-अणु; जाओ-होने पर; अणु-अणु (ऐसा); ववएसो-व्यवहार; होइ-होता है। दो अणुओं के संयोग से द्रव्य ? भावार्थ-दो अणुओं के संयोग से जायमान द्रव्य में यह अणु है, यह त्र्यणुक है-ऐसा
1. व अणुअत्तएहि आरद्धदव्ये तिअणुझं ति निदेसो । 2. व विभत्ते।