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________________ संबोहाचासिया मरण हो । आप मेरे चतुर्गति विषयक दुःख दूर करके अमर पद दो। भावार्थ: भक्त सांसारिक कामनाओं को मन में स्थान नहीं देता । उसका लक्ष सदैव पारलौकिक ही होता है। यहाँ भक्त कदि कहते हैं कि हे भगवन् ! तुम यदि मेरी पूजा से प्रसन्न | हो गधे हो तो मात्र मुझे - (1) समाधिमरण युक्त मरण हो । (२) चतुर्गति के इन दुःखों से मुझे दूर कर दो अर्थात् मुझे अमरपद (मोक्ष) हो। धन्य कौन ? ते धण्णा ते धणिणो ते पुण जीवंति माणुसे लोए । सम्मत्तं जाहि थिरं भत्ती जिणसासणे णिच्वं ॥४९॥ अन्वयार्थ :(लोए) लोक में (ते) वे (धण्णा) धन्य हैं (ते) वे (माणुसे) मनुष्टा (धणिणी) धलवान हैं (पुण) और (ते) वे (जीवंति) जीवित है (जाहि) जिन में (थिरं) स्थिर (सम्मत्तं) सम्यक्त्व और (मिर्च) नित्य (जिणसासणे) जिन शासन में (भत्ती) भविल है। संस्कृत टीका : हे शिघ्य! ते मनुष्या नरनार्यादयोऽत्र संसारे धन्याः, पुनः ते धनिनो मनुष्याः जेया, पुनः ते जीवन्ति जीविताः सन्ति । ते के ? ये मनुष्या अत्र संसारेऽस्मिन् | लोकमध्ये मानुषजन्म प्राप्य श्रावककुलं च प्राप्य दृढीभूतं स्थिरीभूतं निश्चलीभूतं श्रद्धा सचिं कृत्वदृविधं सम्यक्त्वं पालितवन्तः, पालयन्ति, पालयिष्यन्ति च, पुनः | ते नराः धन्याः ज्ञातव्याः। पुनः कीदृशाः धन्याः ? ये नरा नित्यं निरन्तरं जिन - शासनमध्ये चतुर्विधसंघमध्ये, प्राध्यार्यिकाश्रावक श्राविकामध्ये यः कोऽपि धर्मधुरन्धरो भवति, तस्य धार्मिकाय धर्मानुरागण कपट मुषत्वा भक्तिं कुर्वन्ति, तं दृष्ट्या हर्ष कुर्वन्ति ते धन्या ज्ञातव्या, पुनः जिनशासनमध्ये जिनेन्द्रस्य गुणाः | सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि, दशलक्षण धर्माः, षोडशभावना इत्यादिलक्षणा
SR No.090408
Book TitleSamboha Panchasiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGautam Kavi
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year2003
Total Pages98
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
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