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________________ शंका - क्यों नहीं होगी ? समाधान - कुगुरु, कुदेव, कुव्रत के प्रसाद से तथा जिनधर्म की रहितता से | | उन्हें जैनधर्म की प्राप्ति नहीं होगी । कहा है - अदत्तदोषेण - अर्थात् :- दान न देने के दोष से मजीद इरिद्ध होता है दरिद्रता दोष्ट से यात! करता है, पाप से नरक में गिरता है, वहाँ से निकलकर पुनः दरिद्री व पारी होता है। और भी कहा है - चौरेभ्यो न भयं न - अर्थात् :- जिसमें चोरों का भय नहीं है, इंडे नहीं पड़ते, पृथ्वीपति का त्रास | नहीं होता, निःशंक होकर सो सकते हैं, रात्रि में दुर्गम व कठिन मार्ग में भी गमन होता है, ऐसी दरिद्रता बड़ी सुखकारी है। किन्तु इसमें मात्र दो दुःख हैं - (1) स्वजन आकर वापस निकल जाते हैं। (२) मित्र साथ छोड़ देते हैं। और भी कहा है - मधुपाने कुतः - अर्थात् :- मधुपायी में पवित्रता कहाँ से आयेगी ? मांसभक्षी में दया कहाँ ? कामार्थी को लज्जा कैसे होगी ? धनहीन के धर्म क्रिया कैसे होगी ? भावार्थ : दासता एक विवशता है । वह क्यों करनी पड़ती है ? इसका उत्तर ग्रन्थकार ने बड़े ही सुन्दर ढंग से दिया है। वे लिखते हैं कि जो धर्मकार्य से हीन होते हैं, वे भृत्य होते हैं । दरिद्रता का सुन्दर विवेचन टीकाकार ने किया है । गरीबों का होता भी कौन है ? स्वजगत् उसके लिये पराया शहर है। सारे दुःखों ने मिलकर विचार किया कि हम कहाँ रहें ? अन्त में कोई स्वजन न दिखा तो वे गरीब की झोपड़ी में घुस गये । इसलिये ही सारे दुःख गरीबों को सहने पड़ते हैं। एक कवि ने लिखा है कि - हे दरिद्रते । तुम्हें नमस्कार हो । तेरे प्रसाद से मैं सर्वसिद्धि को प्राप्त ।
SR No.090408
Book TitleSamboha Panchasiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGautam Kavi
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year2003
Total Pages98
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
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