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reate योजनामाथि taran
मनुष्यजन्म की श्रेष्ठता जह वयणाणं वि अच्छी आयसि दिणमणिवज्जहा सारं । __ तह सयलजंतु मज्झे माणुसजम्मं पुरो सारं ||८|| अन्वयार्थः(जह) जिसप्रकार (वयणाणं वि) मुख में भी (अच्छी)अक्ष(आँख) (जहा) जैसे (आयसि) आकाश में (हिणमणितत) सूर्य (सारं सारभूत है, शोभित है । (तह) उसीप्रकार (सयलजंतु ) समस्त जीवों(मज्झे) में (माणुसजम्म) मनुष्यजन्म (पुरो) सबसे (सारं) श्रेष्ठ है। संस्कृत टीका :___भो शिष्य ! अत्र संसारे यथा चक्षुषा कृत्वाननं मुखं शोभते । पुनः सूर्येण कृत्वाकाशमण्डलं शोभते तथा तेनैव प्रकारेण सकल जन्तूनां मध्ये षट्काय प्राणिनां | मध्ये जन्म संसार सारीभूतं शोभते। हे जीव! इन्द्रसमजन्म विषयमोहान्धवशात कामात् हार्यते? टीकार्थ :
भो शिष्य ! इस संसार में जिसप्रकार चक्षुसहित मुख शोभा देता है और सूर्य से आकाशमण्डल शोभा देता है, उसीप्रकार षट्कायिक जीवों में मनुष्य जन्म सारभूत है । हे जीव ! इन्द्र के समान मनुष्यजन्म को विषयों में मोहान्ध होकर तुम क्यों गवाँते हो ? भावार्थ:
मुख हो किन्तु नेत्रहीन, आकाशमण्डल सूर्य से शून्य हो तो शोभा नहीं पाता, क्यों कि मुख में नेत्र व आकाश में सूर्य श्रेष्ठ है। वैसे ही पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकाशिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक व उसकायिक इन षट्कायिक जीवों में मनुष्य सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि मनुष्यपर्याय से ही स्वर्ग और मोक्ष के उत्तमोत्तम सुख प्राप्त किये जा सकते हैं।
ग्रन्थकर्ता करुणापूर्वक समझा रहे हैं कि हे जीव ! तू उस सर्वश्रेष्ठ | मनुष्यभव को व्यर्थ मत गवाँ ।