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सर्वविशुद्धशानाधिकार कालो गाणं ण हवइ जमा कालो ण याणए किंचि । तह मा अण्णं गाणं अण्णं कालं जिणा विंति ॥४००॥
यासंपि ण णाणं जह मा यास ण याणए किंचि । तह्मा यासं अण्णं अण्णं णाणं जिणा विति ।।४०१॥
ज्झवसाणं गाणं अभवसाणं अचेदणं जमा । तमा अणं णाणं अज्झवसाणे तहा अण्णं ॥४२॥ जह्मा जाण्इ णिच्चं तह्मा जीको दु जाणो णाणी । णाणं च जाणयादो अवदिरितं मुणेयव्वं ॥४०३॥ णाणं सम्मादिहिँ दु संजमं सुत्तमंगपुवयं । धम्माधम्मं च तहा पवज अब्भुवंति बुहा ॥४०४॥ शास्त्र ज्ञान नहि होता, क्योंकि नहीं शास्त्र जानसा कुछ भी। इससे भान पृथक् है, शास्त्र यक्ष को कहीं प्रभुमे ॥३६०॥ शब्द ज्ञान नहिं होता, क्योंकि नहीं शब्द जामता कुछ भो। इससे ज्ञान पृथक् है, शास्त्र पृथक यों कहा प्रभुने ।।३६१॥ रूप ज्ञान नहिं होता, क्योंकि न रूप जानता कुछ भी। इससे ज्ञान पृथक है, रूप पृथक् यों कहाँ प्रभुने ॥३६२॥ वर्ष ज्ञान नहिं होता, क्योंकि नहीं वर्ण जानता कुछ भी। इससे ज्ञान पृयक है, वर्ण पृथक् यों कहा प्रभुने ॥३६३।। गन्ध ज्ञान नहिं होता, क्योंकि नहीं गन्ध जानता कुछ भी ।
इससे ज्ञान पृथक है, गन्ध पृथक यों कहा प्रभुने ॥३६४॥ स्पर्श, कर्म, कर्म, धर्म, धर्म, अधर्म, अधर्म, काल, काल, आकाश, आकाश, अध्यवसान, अध्यवसान, यत्, [गंधः ज्ञान न भवति] गन्ध ज्ञान नहीं है [यस्मात् क्योंकि [गन्धः किचित् न जानाति] गन्ध कुछ जानता नहीं [तस्मात्] इस कारण [जिना:] जिनेन्द्र देव [ज्ञानं अन्यत् गंधं अन्य] ज्ञानको अन्य व गन्धको अन्य [विदन्ति] कहते हैं । [रसः ज्ञानं न भवति] रस ज्ञान नहीं है [यस्मात् ] क्योंकि [रसः किंचित् न जानाति] रस कुछ जानता नहीं [तस्मात् ] इस कारण [जिनाः] जिनदेव [ज्ञानं अन्यत्] ज्ञानको अन्य व [रसं च अन्य] और रसको अन्य [विदन्ति] कहते हैं । [स्पर्शः ज्ञानं न भवति] स्पर्श ज्ञान नहीं है [यस्मात्] क्योंकि [स्पर्शः किंचित् न