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१५.
पूर्वरंग नात्यंतविसंवादिन्यपि कामभोगानुबद्धा कथा । इदं तु नित्यव्यक्ततयोतः प्रकाशमानमपि कषायचक्रेण सकीक्रियमाणत्वादत्यंततिरोभूतं सत्स्वस्यानात्मज्ञतया परेषामात्मज्ञानामनुपासनाच्च न कदाचिदपि श्रुतपूर्वं न कदाचिदपि परिचितपूर्वं न कदाचिदप्यनुभूतपूर्वं च निर्मलविदेकालोकविविक्तं केवलमेकत्वं । अत एकत्वस्य न सुलभत्वम् ||४||
बञ्चन । अपि-अव्यय । कामभोगबंधकथा - प्रथमा एकवचन कर्ता । एकत्वस्य षष्ठी एकवचन । उपलभःप्र० ए० | नवरि-अव्यय । न-अव्यय । सुलभः प्र० ए० कर्तृ विशेषण | विभक्तस्य षष्ठी विभक्ति एक० । को जानकर उनकी और दौड़ते हैं । और परस्पर में भी विषयोंका ही उपदेश करते हैं । इसलिये काम ( विषयोंकी इच्छा ) तथा भोग ( उनका भोगना) इन दोनों की कथा तो अनन्त बार सुनो, परिचय और अनुभवमें आई, इस कारण सुलभ है। किन्तु सब परद्रव्योंसे भिन्न चैतन्यचमत्कारस्वरूप अपने ग्रात्माकी कथाका न तो स्वयमेत्र कभी ज्ञान हुआ और जिनके हुमा, उनकी न कभी सेवा की, इसलिए इसकी कथा न कभी सुनो, और न वह कभी परिar र अनुभव में ही भाई । इस कारण श्रात्माके एकत्वका पाना सुलभ नहीं है, दुर्लभ है । प्रसंगविवरण -- जिस समयसारका, आत्माके एकत्वका लक्ष्य रखना है वह दुर्लभ क्यों रहा यह बताना इस कारण श्रावश्यक है ताकि एकत्वको श्रोमल कराने वाले अपराधको मेटा जावे | इस उद्देश्यसे इस गाथा का अवतार हुआ है । तथ्यप्रकाश - - ( १ ) यह मोहो सारे विश्वपर एकछत्र राज्य चाहता है, इस कारण कोल्हू के बैलकी तरह विकल्प बोझोंको ढोता फिरता है । (२) इच्छावोंके वेगसे तृष्णा उठने के कारण इस जीवको अन्तर में दुःख प्रकट हो रहा है । ( ३ ) यह जीव तृष्णामहारोगसे पोड़ित होनेसे विषयसाधनों को हापटा मारकर पकड़े हुए है । ( ४ ) विकल्प द्वारा कषायके साथ अपने एकत्वको मिला देनेसे मोहोको एकत्वका ज्ञान असुलभ है ।
सिद्धान्त - ( १ ) जीवलोक में संसारी श्रज्ञानी जीवोंका संग्रह होता है । ( २ ) यह जीव तृष्णाकी वेदना न सही जानेसे विषयसाधनों को रोकता है।
दृष्टि - १ - अशुद्ध अपरसंग्रहनय नामक द्रव्यार्थिकनय ( ८ ) । २- परकर्तृत्वव्यव हार (१२६ ) |
प्रयोग --- कामभोगबन्धकी दशा कष्टकारिणी है इस कारण पञ्च इन्द्रियके विषयोंसे हटने के लिए आनन्दनिधान सहज अन्तस्तत्त्वको चर्चा सुनने व इस एकत्वको अनुभबनेके लिये यह प्रयत्न हो -- ज्ञानसे ज्ञानमें ज्ञान हो हो । इस अभ्यास से निज सहज एकत्वस्वरूपकी सुलभता हो जावेगी ||४||
इस हो कारण अब भिन्न आत्माका एकतव दिखलाया जाता है -- [तं] उस [ एकस्वविभक्तं ] एकत्वविभक्त प्रात्माको [ ग्रहं ] मैं [ श्रात्मनः ] श्रात्मा [स्वविभवेन ] निज