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५८.२
समयसार
जह परदर्द से हि पण सहावेण | तह परदव्वं सद्दहइ सम्मादिट्ठी सहावेण || ३६४ ॥ एवं हारस्तदु विणिच्छश्रो गाणदंसणचरिते । भणियो अण्गोसु वि पज्जएस एमेव गायव्वो ॥ ३६५॥ (दशकम् )
ज्यौं सेटिका न परकी, सेटिका सेटिका ही होती है । त्यज्ञायक नहि परका, ज्ञायक ज्ञायक हि होता है || ३५६ ।। ज्यों सेटिका न परकी, सेटिका सेटिका ही होती है ।
दर्शक नहिं परका, दर्शक दर्शक हि होता है ।। ३५७ ।। सेटिका न परको, सेटिका सेटिका ही होती है । संपत नहि परका, संयंत संयत हि होता है ॥ ३५८ ॥ ज्यौं सेटिका न परकी, सेटिका सेटिका ही होती है । त्यौं दर्शन हि परका, दर्शन दर्शन हि होता है ।। ३५६ ॥ यौं निश्चयका आश्रय, दर्शन ज्ञान चारित्रमें भाषित । अब व्यवहाराशयको, सुनो सुसंक्षेप में कहते ॥ ३६० ॥ ज्यौं परको श्वेत करे, सेटिका वहां स्वकीय प्रकृतीसे । त्यो परको जाने यह, ज्ञाता भि स्वकीय भाव हि से ।। ३६१ ॥ परको श्वेत करे, सेटिका वहां स्वकीय प्रकृतीसे । प्रात्मा भि स्वकीय भाव हि से ॥३६२॥ सेटिका वहां स्वकीय प्रकृतीसे । श्रात्माभि स्वकीय भाव हि से ।।३६३ ॥
त्यौं परको देखे यह ज्यों परको श्वेत करे, त्यों परको त्यागे यह
सहाव, सम्मादिद्धि, विणिच्छय, गाणदंसणचरित, भणिअ, अण्ण, पज्जय, एमेव, णायव्व । धातुसंज्ञहो सत्तायां, सुण श्रवणे, सेड वेती करणे, जाण अवबोधने, पास दर्शने, वि जहा त्यागे, सद् दह धारणे ।
में [ समासेन व्यवहारनयस्य वक्तव्यं शृणु ] संक्षेपसे व्यवहारनयका कथन सुनो।
[ter] जैसे [सेटिका प्रात्मनः स्वभावेन ] सफेदी अपने स्वभाव से [परद्रव्यं सेटयंति ] परद्रव्यको याने दीवार आदिको सफेद करती है [ तथा ] उसी प्रकार [ज्ञाता अपि स्वकेन भावेन परद्रव्यं जानाति ] ज्ञाता भी अपने स्वभावसे परद्रव्यको जानता है [ यथा ] जैसे [सेटिका आत्मनः स्वभावेन परद्रव्यं सेटयति ] सफेदी अपने स्वभावसे परद्रव्यको सफेद करती