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समयसार
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प्यपरवस्तुनो विशति नान्यवस्त्वंतरं । स्वभावनियतं यतः सकलमेव वस्त्विष्यते स्वभावचलनाकुलः किमिह मोहितः क्लिशठते ।। १२॥ वस्तु चैकमिह नान्यवस्तुनो येन तेन खलु वस्तु वस्तु तत् । निश्चयायमपरोऽपरस्य क: किं करोति हि बहिलुठन्नपि ॥ १३॥ यत्तु वस्तु कुरु. तेऽन्य वस्तुनः किंचनापि परिणामिनः स्वयं । व्यावहारिकदृर्शव तन्मतं नान्यदस्ति किमपोह निश्चयात् ।।२१४।। ।। ३४६-३५५ ।। करोति हवाइ भवति-वर्तमान लट् अन्य पुरुष एकवचन ! अणपणो अनन्यः-प्र० ए० । से तस्याः -षष्ठी ए० । कुट्वंतो कुर्वन्–प्रथमा एक० कृदन्त । णिश्चदुविखओ नित्यदुःखितः-प्रथमा एक० । तत्तो तत:--अव्यय । सिया स्यात्-विधिलिङ अन्य पुरुष एकवचन । चेट्टतो चेष्टमानः प्रथमा एक० । दुही दुःखी-प्र० ए०। जीवो जीव:-प्रथमा एकवचन ।। ३४६-३५५ ।।
__ सिद्धान्त.१- जीव व्यवहारनयसे द्रव्यकर्मको करता है । २- जीव व्यवहारनयसे कर्मफलको भोगता है । ३-अज्ञानी जोव निश्चयसे मिथ्यात्वरागादिरूप भावकमको करता है। ४--जीव निश्चयसे हर्षविपादादिरूप परिणामको भोगता है । ५- परमार्थसे प्रात्मा कर्तृत्व भोक्तृत्वसे शून्य है ।
दृष्टि-....१- परकर्तृत्व अनुपचरित असदभूतव्यवहार (१२६) । २-- परभोक्तृत्व अनुपचारित असद्भूतथ्यवहार (१२६ अ)। ३-अशुद्धनिश्चयनय (४७) । ४-अशुद्धनिश्चयनय (४७) । ५--शुद्धनय, शून्यनय (४६, १६८, १७३) ।
प्रयोग-~-बाह्य पदार्थ के करने भोगनेकी असंभवता जानकर, रागादिक अशुद्ध परिणामौके करने भोगनेको अपराध जानकर, उन सबसे हटकर सहज चित्स्वरूप अन्तस्तत्त्वमें उपयोग लगाना ।। ३४६.-३५५ ।।
अब इस निश्चयव्यवहारनयके कथनको दृष्टांत द्वारा स्पष्ट करते हैं - [यथा] जैसे [ सेटिका तु] सफेदी-कलई-खड़िया मिट्टी तो [परस्य न परकी याने दीवार आदिकी नहीं है [सेटिका] सफेदी तो [सा च सेटिका भवति] वह सफेदी ही है तथा] उसी प्रकार [शायकः तु] ज्ञायक प्रात्मा तो [परस्य ने] परद्रव्यका नहीं है [शायकः स तु ज्ञायकः] ज्ञायक तो वह ज्ञायक ही हैं। [यथा] जैसे [सेटिका त] सफेदी [परस्य न] परद्रव्यको नहीं है [सेटिका सा च सेटिका भवति ] सफेदी तो वह सफेदी हो है [तथा] उसी प्रकार, [दर्शकः त] देखने वाला प्रात्मा [परस्य न] परका नहीं है सेटिका सा च सेटिका भवति] सफेदो तो वह सफेदी ही है [तथा] उसी प्रकार [दर्शक: तु] देखने वाला प्रात्मा [परस्य न] परका नहीं है [दर्शकः स तु दर्शकः दर्शक तो वह दर्शक ही है [यथा] जैसे [सेटिका तु] सफेदी