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समयसारं कैश्चित्तु पर्यायविनश्यति नैव कश्चित्तु जीवः । यस्मात्तस्मालरोति स वा अन्यो वा नैकांतः ।। ३४५ ।। : कैश्चित्तु पर्याय विनश्यति नैव कैश्चित्तु जीवः । यस्मात्तस्माद्वेदयते स वा अन्यो वा नकातः ।। ३४६ ।। यश्चव करोति स चैव वेदयते । यस्यैष सिद्धांतः । स जीवो ज्ञातव्यो मिथ्याष्टिरनार्हतः । ३४७ ।। अन्यः करोत्यन्य: परिभुक्ते यस्य एष सिद्धांतः। स जीवो ज्ञातव्यो मिथ्यादृष्टि रनाहतः ।। ३४८ ॥
यतो हि प्रतिसमयं संभवदगुरुलघुगुणपरिणामद्वारेण क्षणिकत्वादचलितचैतन्यान्वयगुणद्वारेण नित्यत्वाच्च जीवः कश्चित्पर्यायविनश्यति, कैश्चित्तु न विनश्यतीति द्विस्वभावो जीवस्वकरणे, वेद वेदने, कुष्ण करणे, परि भंज भोगे। प्रातिपदिक-कश्चित्, पर्याय, न, एव, जीव, यत्, तत्, तत्, वा, अन्य, वा, न, एकान्त, तु, पर्याय, जीव, यत्, एतत्, सिद्धांत, तत्, जीव, ज्ञातव्य, मिथ्या दृष्टि,
और जिसका ऐसा सिद्धान्त है कि [य एव] जो जीव [करोति] करता है [स चैव वेश्यते] वही भोगता है | स जीवः] वह जोव [मिथ्याष्टिः] मिथ्या दृष्टि [ज्ञातव्यः] जानना [अनार्हतः] वह परहंतके मतका अनुयायी नहीं है [यस्य एष सिद्धांतः] तथा जिसका ऐसा सिद्धान्त है कि [अन्यः करोति] कोई अन्य करता है [अन्यः परिभुक्ते] और कोई दूसरा भोगता है [स जीवः] वह जीव [मिथ्याष्टिः] मिथ्यादृष्टि [ज्ञातव्यः] जानना [अनाहतः] वह अरहंतके मतका अनुयायी नहीं है।
तात्पर्य-जीव नित्यानित्यात्मक है यह युक्ति, प्रागम व प्रनुभवसे सिद्ध है। ___टोकार्थ-~-चूंकि प्रतिसमय होने वाले अगुरुलधुगुणके परिणामके द्वारा क्षणिकपना होनेसे और प्रचलित चैतन्यके अन्ययरूप गुणके द्वारा नित्यपना होनेसे जीव कुछ एक पर्यायों से तो विनष्ट होता है तथा कितने ही भावोंसे विनष्ट नहीं होता, ऐसे जीवका स्वभाव दो स्वरूप है, इस कारण जो ही करता है वही भोगता है अथवा अन्य ही भोगता है, जो भोगता है वही करता है अथवा अन्य करता है ऐसा एकांत नहीं है। इस प्रकार अनेकांत होनेपर भी जो ऐसा मानता है कि जिस क्षणमें जो पर्याय होती है उसोको परमार्थरूप सत्तासे वस्तुपना है, इस प्रकार वस्तुके अंशमें वस्तुत्वका निश्चय करके शुद्धनयके लोभसे ऋजुसूत्रनयके एकांत में ठहरकर जो ऐसा श्रद्धान करता है कि जो करता है वही भोगता नहीं, अन्य करता है और अन्य ही भोगता है वह जोव मिथ्यारष्टि हो जानना क्योंकि पर्यायरूप अवस्थानोंके क्षणिकपना होनेपर भी वृत्तिमान (पर्यायो) जो चतन्यचमत्कार टंकोत्कीर्ण नित्य स्वरूप है उसका अंतरंग में प्रतिभासमानपना है।
भावार्थ-वस्तुका स्वभाव पागममें द्रव्यपर्यायस्वरूप कहा है । सो पर्यायको अपेक्षासे तो वस्तु क्षणिक है और द्रव्यको अपेक्षासे नित्य है ऐसा स्याद्वादसे सिद्ध होता है । जीवनामक वस्तु भी ऐसा ही द्रव्यपर्यायस्वरूप है, अतः पर्यायकी अपेक्षासे देखा जाय तब तो कार्यको