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समयसार नैमितिकभावं प्रथयनकर्तृत्वमात्मनो ज्ञापयति । तत एतत् स्थितं, परद्रव्यं निमित्तं, नैमित्तिका । प्रात्मनो रागादिभावाः । यद्येवं नेष्येत तदा द्रव्याप्रतिक्रमणाप्रत्याख्यानयोः कर्तृत्वनिमित्तत्वो । पदेशोऽनर्थक एव स्यात् । तदनर्थकत्वे त्वेकस्यैवात्मनो रागादिभावनिमित्तत्वापत्ती नित्यकर्तृ.। स्वानुषंगान्मोक्षाभाव: प्रसजेच्च । ततः परद्रव्यमेवात्मनो रागादिभावनिमित्तमस्तु । तथासति तु रागादीनामकारक एवात्मा, तथापि यावन्निमित्तभूतं द्रव्यं ने प्रतिक्रामति न प्रत्याचष्टे च आत्मन्, तावत्, कर्तृ, तत्, सातव्य । मूलधातु-शा अवबोधने, वर्ण वर्णने, डुकृत्र करणे, भू सत्तायां। " पदविवरण-अपडिक्कम अप्रतिक्रमण-प्रथमा एकवचन | दुबिहं द्विविध-प्रथमा एक० । अपच्चक्खाणं । अप्रत्याख्यान-प्र० एक० । तह तथा एव-अव्यय । विष्णेयं विज्ञयं-प्र० ए० । एएण एतेन-तृतीया एक०।। उरएसेण उपदेशेन-तृतीया एकायच-अव्यय । अकारयो अकारक:-प्रथमा एक०। वष्णियो प्र० ए० । चेया चेतयिता-प्र० ए० । अपडिक्कमणं अतिक्रमणं दुविहं द्विविध-प्रथमा एक० ! दब्बे द्रव्ये । भावे-सप्तमी एक०।तहा तथा अध्यय । अपच्चक्खाणं अप्रत्याख्यान-प्रथमा एकवचन । एएण आ त्तिकभूत रागादिभावोंका प्रतिक्रमण प्रत्याख्यान होता है तथा जिस समय इन भावोंका प्रतिक्रमण प्रत्याख्यान हुआ उस समय साक्षात् अकर्ता हो है। भावार्थ-यहाँ द्रव्य अप्रतिक्रमण और भाव अप्रतिक्रमण, द्रव्य अप्रत्याख्यान और भाव अप्रत्याख्यान ऐसे दो प्रकारका जो उपदेश है वह द्रव्यभावके निमित्तनैमित्तिक भावको बताता है कि परद्रव्य तो निमित्त है और रागादिक भाव नैमित्तिक हैं । सो जब तक निमित्तभूत परद्रव्यका त्याग इस आत्माके नहीं है तब तक तो रागादिभावोंका परिहार नहीं है और जब तक रागादिभावोंका अप्रतिक्रमण और अप्रत्याख्यान है तब तक रागादिभावोंका कर्ता ही है । तथा जिस समय निमित्तभूत परद्रव्यका त्याग करे; उस समय नैमित्तिक रागादिभावोंका भी परिहार हो जाता है, और जब रागादि भावोंका परिहार हो जाय तब साक्षात् अकर्ता हो है । इस प्रकार प्रात्मा स्वयमेव तो रागादि भावोंका अकर्ता हो है, यह सुसिद्ध हुआ।
प्रसंगविधरस-अनन्तरपूर्व गाथा तक ५ गाथावोंमें जीवके रागादिकके प्रकारकाने को वर्णनका स्थल समाप्त किया था । अब रागादिकका प्रकारकपना कैसे है, इस जिज्ञासाका समाधान इन तीन गाथावोंमें किया है। ..
तथ्यप्रकाश-१-मात्मा अपने आपके द्वारा रागादिका प्रकारक है, अन्यथा अप्रतिक्रमण व अप्रत्याख्यान दो-दो प्रकारके न दिखाये जाते । २- अप्रतिक्रमण दो प्रकारका है-- (१) भाव अतिक्रमण, (२) द्रव्य प्रतिक्रमण । ३-अप्रत्याख्यान दो प्रकारका है—(१) भाव प्रत्याख्यान, (२) द्रव्य अप्रत्याख्यान । ४- परद्रव्यको न त्याग सकना द्रव्य अप्रत्याख्यान आदि है । ५-परद्रव्यविषयक राग न त्याग सकना भाव अप्रत्याख्यान प्रादि है । ६-परद्रव्य