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बन्धाधिकार नाभावात् श्रद्धानमपि नास्ति । एवं सति तु निश्चयनयस्य व्यवहारनयप्रतिषेधो युज्यत एक ॥ २७५ ।। यति फासेदि स्पृशति-वर्तमान लट् अन्य पुरुष एक० । धम्म धर्म-द्वितीया एक. । भोगणिमित्तं भागनिमित्तं-द्वितीया एक० । ण न दु तु-अव्यय । सो सः-प्रथमा एक० । कम्मवखणिमित्तं कर्मक्षयनिमित्तंद्वितीया एकवचन ।। २७५ ॥ को सर्वसंकटहीन बनाना ।।२७५॥
प्रश्न—निश्चयनय और निश्चयनय किस प्रकारसे प्रतिषेध्य प्रतिषेधक हैं ? उत्तर-- [प्राचारादि ज्ञान] आचारांग प्रादि शास्त्र तो ज्ञान हैं [च] तथा [जीवादि दर्शन] जीवादि तत्त्व दर्शन [विशेष जानना [५] और षड्जीवनिका] छह जीवनिकाय [चारित्रं] चारित्र है [तथा तु] इस तरह तो [व्यवहारः भगति] व्यवहारनय कहता है [खलु] और निश्चयसे [मम प्रात्मा ज्ञानं] मेरा अात्मा ही ज्ञान है में आत्मा मेरा आत्मा ही [दर्शन चारित्रं च] दर्शन और चारित्र है [प्रात्मा] मेरा अात्मा हो [प्रत्यास्यानं] प्रत्याख्यान है [मे आत्मा] मेरा प्रात्मा ही [संवरः योगः] सम्बर और समाधि व ध्यान है ।
तात्पर्य-निश्चयनयसे प्रात्मा ही ज्ञानादि है इसके होनेपर व्यवहार ज्ञान आदिसे यह जीव प्रतीत हो जाता है इस कारण निश्चयनय प्रतिषेधक है ।
टोकार्थ---प्राचारांग आदि शब्दश्रुत ज्ञान है, क्योंकि वह ज्ञानका प्राश्रय है। जोव आदि नव पदार्थ दर्शन हैं, क्योंकि ये दर्शनके आश्रय हैं । और छः जीवनिकाय याने छह काय के जीवोंकी रक्षा चारित्र है, क्योंकि यह चारित्रका आश्रय है । यह तो व्यवहार है। शुद्ध मात्मा ज्ञान है, क्योंकि ज्ञानका प्राश्रय आत्मा हो है । शुद्ध आत्मा हो दर्शन है, क्योंकि दर्शन का प्राश्रय प्रात्मा ही है । शुद्ध आत्मा ही चारित्र है, क्योंकि चारित्रका आश्रय पात्मा ही है । यह निश्चय है । प्राचारांग आदिकको ज्ञानादिकके प्राश्रयपनेका व्यभिचार है याने प्राचारोग प्रादिक तो हों, परन्तु ज्ञान आदिक नहीं भी हों, इसलिये व्यवहारनय प्रतिषेध करने योग्य है, परन्तु निश्चयनयमें शुद्ध प्रात्मासे साथ ज्ञानादिकके आश्रयत्वका ऐकांतिकपना है । जहाँ शुद्ध मात्मा है वहाँ ही ज्ञान दर्शन चारित्र हैं, इसलिये व्यवहारनयका निषेध करने वाला है । यही प्रबं स्पष्ट करते हैं..--प्राचारादि शब्दश्रुत एकान्तसे ज्ञानका प्राश्रय नहीं है, क्योंकि प्राचाराङ्गादिकका अभव्य जीवके सद्भाव होनेपर भी शुद्ध प्रात्माका अभाव होनेसे ज्ञानका प्रभाव है । जीव आदि नौ पदार्थ दर्शनका प्राश्रय नहीं है, क्योंकि अभव्यके उनका सद्भाव होनेपर भी शुद्धात्माका अभाव होनेसे दर्शनका अभाव है। छहकायके जीवनिकाय याने जीवोंको रक्षा