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बन्धाधिकार
४२३ कतमो बन्धहेतुः ? न तावत्स्वभावत एव रजोबना भूमिः, स्नेहान पक्तानामपि तत्रस्थानां तस्प्रसङ्गात् । न शस्त्रव्यायामकम, स्नेहान भ्यक्तानामपि तस्मात् तत्प्रसंगात् । नानेकप्रकारकर. गानि, स्नेहान भिव्यक्तानामपि तस्तत्प्रसंगात् । न सचित्ताचितवस्तूपघात , स्नेहानभिव्यक्तानामपि तस्मिस्तत्वसंगात् । ततो न्यायवलेनैवैतदायातं यत्तस्मिन् पुरुषे स्नेहा भ्यंगकरणं स बंरहेतुः । कदलीवंशपिंडी, सचित्तचित्त, द्रव्य, उपघात, उपधात, कुर्वन्तु, ता. नानाविध, करण, निश्चयतः, किप्रत्ययक, तु, तत्, रजोवन्ध, यत्, तत्, तु, स्नेहभाव, तत् नर, तत्, रजोबन्ध, निश्चयन:, विज्ञेय, न, कायचेष्टा, शेषा, एव, मिच्याइष्टि, वर्तमान, बहुविधा, चेष्टा, रागादि, उपयोग, कुर्वाण, रजस् । मूलधानु - प्ठा तमाल, के.ल, अशोक इत्यादि वृक्षों को [छिनत्ति] छेदता है [च भिनत्ति और भेदता है [तथा] संथः सचित्ताचित्तानां] सचित व अचित्त [द्रव्याणां] द्रव्योंका [उपघातं] उपघात [करोति] करना है। इन प्रकार [नानाविधैः करणः नाना प्रकारके करणों द्वारा [उपघातं कुर्वतः] उपघात करते हुए [तस्य] उस पुरुषके [खलु] वास्तवमें [रजोबंधः तु] रजका बन्ध [किप्रत्ययिकः] किस कारगासे हुया है ? [निश्चयतः] निश्चयसे [चिन्त्यता] विचारिये । [तस्मिन् नरे] उस मनुष्य [य: तु] जो [सः स्नेहभावः] वह सैल प्रादिकी चिकनाहट है [तेन] उससे [तस्य रजोबंधः] उसके धूलिका बन्ध होता है [निश्चयतः विज्ञेयं] यह निश्चयसे जानना चाहिये । [शेषाभिः कायचेष्टामिः] शेष कायकी चेष्टानोंसे [न] धूलिका बंध नहीं है [एवं] इसी प्रकार [बहुविधासु चेष्टासु] बहुत प्रकारकी चेष्टानोंमें [वर्तमानः] वर्तता हुना [मिथ्यादृष्टिः] गिश्यादृष्टि जीव [उपयोगे] अपने उपयोगमें [रामादीन कुरियः] रागादि भावोंको करता हुआ [रजसा] कर्मरूप र जसे [लिप्यते] लिप्त होता है याने बँधता है ।
तात्पर्य ----मिथ्यात्व राग ग्रादि भावों में परिणत जीवके कर्मका बन्ध होता है।
टीकार्थ--इस लोक में निश्चयसे जैसे कोई पुरुष स्नेह (तैल) प्रादिकसे अवलिप्त हुमा स्वभाव से ही बहुत धूलि वालो भूमिमें स्थित हुप्रा शस्त्रोंसे व्यायाम कर्म करता हुअा अनेक प्रकारके शम्त्रोंसे सचित्त प्रचित्त वस्तुओंको काटता हुमा उस भूमिकी धूलिसे लिप्त होता है। यहाँ निर्णय करें कि वहाँ पुरुषके बन्धका कारण इनमें कौन है ? तो पहिले यही देख लीजिये कि जो स्वभावसे ही रजोव्याप्त भूमि है वह बन्धका कारण नहीं है । क्योंकि यदि भूमि ही कारण हो तो उस भूमिपर ठहरे हुए तेल प्रादिसे अनवलिप्त पुरुषोंके भी धूलिके चिपट जानेका प्रसंग या जावेगा । शस्त्रोंसे व्यायाम करना भी उस धूलिसे बँधनेका, लिप जाने का कारण नहीं है । यदि शस्त्रों में व्यायाम करना धूलिसे बंधनेका कारण हो तो जिनके तेल मादि नहीं लगा, उनके भी उस शस्त्राभ्यासके करनेसे रजका बंध होनेका प्रसङ्ग प्रा जायगा ।